कविता

प्रियवर तुम हो अति विशेष

न जाने वह यह सब
कर लेती थी कैसे?
तंगी भरे दिनों में भी
रख कंधे पर हाथ
निकाल देती थी पैसे।

देखता रहता अपपलक
शांत सौम्य थोड़ी कड़क,
पल्लू को खोंस कमर में
देखती जाती दूर तलक।

चँद दिनों में ही कैसे
गह लिया मुझको ऐसे
कैसे कर लेती हो तुम सखे
जैसे धमनी में रक्त बहे।

इतना समर्पण ऐसा अर्पण
सीमित संसाधनों मे भी
गृहस्थ का पूरा संचालन
अरु संचित भी कर लेती धन?

दौड़ा फिर रसोई घर
थी वो पसीने से तर बतर,
चूमा उसके मस्तक को
उसने लिया बाँहों में भर,
फिर फफक फफक कर,
गोद में उसके सर रखकर
मन हुआ हल्का ताजा तरीन
निकला जैसे इंद्रधनुष रंगीन
ऐसा संचालन, ऐसा निवेश
हर महिला होती अति विशेष।

— सविता सिंह मीरा

*सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com