वजूद की तलाश में नारी
सदियों से जुल्म सहे हैं
वो बदस्तूर अभी भी है जारी
अपने वजूद की तलाश में
क्यों भटक रही है अभी भी नारी
पढ़ लिख कर छू रही है आसमान
जो कभी इन रास्तों से थी अनजान
अंधेरी राहों पर जा नहीं सकती अकेली
तकते रहते हैं कई हैवान
नहीं करोगे यदि नारी का सम्मान
मां के दूध का कर्ज कैसे चुकाओगे
बेटी बहन की मन से करोगे इज़्ज़त
तो बेटी बहन की उतनी ही इज़त पाओगे
नारी चाहे कितनी भी हो जाये शक्तिशाली
आज भी बेटी अकेली जाने से है घबराती
कितनी तरक्की हमने की है ज़रा सोचो
यह हमारी मानसिकता का एहसास है कराती
सदियों से हमारी मानसिकता कैसे बदल जाएगी
नारी जब आज़ाद होगी वह भोर कब आएगी
आखिर कब तक नारी पर होता रहेगा अत्याचार
इस दुनियां को यह बात कब समझ आएगी
मैं कौन हूँ कहां से आई मेरा कौन सा है ठिकाना
अपने पास रखते नहीं कहते दूसरे के घर है जाना
बजूद की तलाश में भटक रही हूँ अब तक
आखिर कब तक मुझे है यूँ ही भटकते जाना
— रवींद्र कुमार शर्मा