मुक्तक/दोहा

प्रकृति दर्शन

(१)
सरोवर की इन बन्दिशों में भी
अजब सा प्रेम सौन्दर्य भर रहा है।
ख्वाबों के इस शहर ने मुझे भी,
अपने अनुभवों के लिए चुना है।।

(२)
राधिका ने मेरे प्रणय निवेदन को सुना है,
भंवर की इन पंक्तियों में ये स्नेह मिला है।
झील के इस ठहराव ने जीना सिखाया,
मुझे इन गहराइयों से इक सबक मिला है।।

(३)
अहंकार को सूर्योदय की किरणों ने जलाया,
धरा पर इन शबनम की बूंदों से मुझे मिलाया।
अधरों पर मुस्कान भरी बंशी जब बजने लगी,
बरसाना के सरोवर से मेरा परिचय करवाया।।

(४)
दल – दल की ये चुभन महसूस होती रही,
अहसास की राग भरी रागिनी सुनती रही।
ऋतुओं के हर एक पुरातत्व इतिहास को,
हृदय की गहन अनुभूतियों में समेटती रही।।

— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ “सहजा”

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)