वन उपज से दीर्घकालीन रोजगार का लक्ष्य
समावेशी विकास के लिए आदिवासी समुदायों की प्रगति को टिकाऊ आधार देना बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इसके लिए लघु वन उपज आधारित आजीविकाओं का विशेष महत्च है क्योंकि वन बहुत नजदीकी तौर पर आदिवासी जन-जीवन से जुड़े हैं। यदि विविध तरह की लघु वन उपज का उपयोग वन-रक्षा के लिए जरूरी सावधानियों के अनुकूल हो, तो इससे टिकाऊ तौर पर आजीविका आधार बढ़ाने और बेहतर करने के अनेक अवसर उपलब्ध हो सकते हैं।
इन संभावनाओं को अधिकांश स्थानों पर अभी प्राप्त नहीं किया जा सका है क्योंकि चाहे लघु वन उपज एकत्र करने में आदिवासी कितनी भी मेहनत करें, पर उन्हें इस एकत्रित लघु वन उपज की उचित कीमत नहीं मिल पाती है। जब काफी मेहनत से एकत्रित उपज को व्यापारियों को बहुत सस्ती कीमत पर बेचना पड़ता है, तो प्रायः आदिवासी ठगे से महसूस करते हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए जहां उचित कीमत उपलब्ध करवाना जरूरी है। यह भी आवश्यक है कि इन उत्पादों के स्थानीय प्रसंस्करण द्वारा उनकी मूल्य वृद्धि की जाए और इस तरह बेहतर कीमत प्राप्त करने के साथ-साथ स्थानीय रोजगार सृजन में भी वृद्धि की जाए।
कुछ ऐसा ही प्रयास हो रहा है आदिवासी महिलाओं की प्रोड्यूसर कंपनी घूमर द्वारा, जो राजस्थान के पाली और उदयपुर जिलों में सक्रिय हैं। ग्रामीण महिलाओं की सदस्यता के आधार पर चल रही इस प्रोड्यूसर कंपनी ने सैकड़ों महिलाओं और उनके परिवारों की लघु वन उपज से प्राप्त आय में मात्र पांच-छह वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि की है। धर्मी बाई की ही बात करें तो जहां पहले वह एक वर्ष में लघु वन उपज से 6 हजार रुपये के आसपास ही प्राप्त कर सकती थीं, वहां अब उनके परिवार ने एक वर्ष में 79,450 रुपये की आय लघु वन उपज से प्राप्त की। इन गांवों में ऐसी सैकड़ों महिलाएं मिल जाएंगी, जो 50,000 रुपये के आसपास एक वर्ष या सीजन में लघु वन-उपज से प्राप्त कर रही हैं।
घूमर महिला प्रोड्यूसर कंपनी में लगभग 2000 महिला शेयर होल्डर हैं, जिनमें से अधिकांश गरासिया आदिवासी महिलाएं हैं। इस कंपनी के लगभग सभी उत्पाद इन महिलाओं और उनके परिवारों की आजीविका को सशक्त करने के साथ स्वास्थ्य को बेहतर करने वाले उत्पादों से जुड़े हैं। सीताफल या कस्टर्ड एप्पल के गूदे को निकाल कर विभिन्न खाद्य औद्योगिक इकाइयों को बेचा जाता है, जबकि इसके बीज और छिलके का भी उचित उपयोग होता है। जामुन के स्लाइस और पेय तैयार होते हैं। पलाश के फूल का गुलाल बनता है और अन्य वनस्पतियों आधारित सूखे रंग भी बनते हैं। पलाश की पत्तियों के दोने-पत्तल बनते हैं। बेर छांट कर बेचे जाते हैं और इसके चूर्ण और पेस्ट से अन्य उत्पाद भी बनते हैं, जैसे लड्डू और लालीपॉप जैसा खाद्य।
घूमर महिला प्रोड्यूसर कंपनी ने इन विभिन्न उत्पादों के लिए आधुनिक उत्पादन विधियां विकसित की हैं और इसके लिए जरूरी मशीनें और उपकरण खरीदे हैं, पर साथ ही ऐसी तकनीक अपनाई है जो अधिकांश यंत्र आधारित न हो और जिसमें आदिवासी ग्रामीण महिलाओं को पर्याप्त रोजगार मिलता रहे। इन विभिन्न उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के प्रयास तेज हो रहे हैं, पर इन ग्रामीण महिलाओं के लिए केवल आय बढ़ाना ही सब कुछ नहीं है, वे इस ओर भी ध्यान देती हैं कि वनों की रक्षा करते हुए ही उपज प्राप्त की जाए ताकि वन आधारित आजीविका टिकाऊ आधार पर सुरक्षित रहे।
दूसरी ओर कुछ बाहरी एजेंट इस तरह वनों का दोहन करने का प्रयास करते हैं, जिससे कच्चे फल भी तोड़े जाते हैं और पेड़ों से सीताफल जैसे फल कम प्राप्त होते हैं। फल प्राप्त करने का सीजन छोटा हो जाता है, फल एकत्रित करने वालों की आय कम होती है और कच्चे ही तोड़ लिए गए फल एक तरह से नष्ट ही होते हैं क्योंकि उनका कोई विशेष उपयोग नहीं हो पाता है।
दूसरी ओर घूमर महिला प्रोड्यूसर कंपनी से जुड़ी महिलाओं को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि विभिन्न सावधानियों को अपनाते हुए ही फल, फूल, पत्ती आदि को प्राप्त किया जाए। साथ ही स्थानीय परिवेश से जुड़े होने के कारण उन्हें स्वाभाविक तौर पर भी इस विषय का बेहतर पारंपरिक ज्ञान होता है कि क्या तोड़ना है और क्या नहीं तथा कैसी सावधानी बरतना जरूरी है।
कंपनी के नेतृत्व का प्रयास है कि इसके उत्पादन और आय को बढ़ाकर इसे कहीं अधिक महिलाओं तक पहुंचाया जाए और उन्हें अधिक आय भी उपलब्ध कराई जाए। इसे संबंधित अधिकारियों से भी सहयोग मिल रहा है। एक बड़ा सवाल यह है कि क्या इसके उत्पाद स्वयं भी एक लोकप्रिय ब्रांड के रूप में सीधे-सीधे उपभोक्ताओं में अधिक व्यापक स्थान प्राप्त कर सकेंगे। यदि ऐसा संभव हुआ तो यह वन-उपज आधारित आदिवासियों की टिकाऊ आजीविका को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा
— विजय गर्ग