लघुकथा – हार या जीत
सुमीत और सुनील गहरे दोस्त थे।दोनों बराबर विद्यालय आते रहे।सुमीत का चेहरा शाला में रहने के दौरान हमेशा खिला रहता था।अपने मन की बातें अपने शिक्षकों से खुलकर कहता था।शायद इसी कारण पढ़ाए गए संबंधित प्रश्न पूछने पर तपाक से उत्तर देता था।सुनील नियमित शाला आने वाला विद्यार्थी जरूर था लेकिन चेहरे से रौनक गायब रहती थी।कभी कभी ऐसा लगता था कि उसे जबरन स्कूल भेजा जाता है।मगर एक क्षेत्र में वह हमेशा आगे रहता था और वह था खेलकूद।हर खेल में भाग लेता था।धीरे धीरे समय बीतता गया, परीक्षा नजदीक आ गई।निर्धारित तिथि में परीक्षा भी संपन्न हुआ।उत्तर पुस्तिका जांचने के बाद देखा कि सुमीत तो ए प्लस ग्रेड में पास हुआ लेकिन सुनील बी ग्रेड ही ला पाया। जिस कारण वह गुमसुम और अपने दोस्तों से कटा कटा रहने लगा।शिक्षक के पूछने पर अभिभावकों ने बताया कि उनका ग्रेड कम होने के कारण अपने आप से नाराज है।ऊपर से घर में भी कम ग्रेड होने के कारण अच्छी खासी डांट पड़ गई थी।तब मैंने कहा कि आप लोग सिर्फ एकपक्षीय सोच के साथ क्यों डांटने लगे थे।क्या आप लोगों ने उनका शारीरिक शिक्षा व खेलकूद का ग्रेड देखा?वे सब अवाक रह गए और बोले कि उसको कौन देखता है?आप सबको समग्र रोपोर्ट पर भी ध्यान देना था क्योंकि इन सब में वह ए प्लस ग्रेड की योग्यता रखता है।मैंने कहा कि सबके सीखने की क्षमता अलग अलग होती है तो एक ही नजरिए से देखना कहां तक उचित है? सुनील घर में दुबक कर मेरी बातें गौर से सुन रहा था और अब चेहरे पर मुस्कान दिखने लगा।मगर मैं उस समय और आज भी असमंजस महसूस करता हूं कि इस परिणाम से एक शिक्षक के रूप में मेरा आकलन क्या हो? मेरी हार हुई या जीत? अभी भी सोच रहा हूं।
— राजेन्द्र लाहिरी