गरीब-अमीर में अंतर
आज गया था एक मुहल्ले में घूमने
वहाँ की आबोहवा को सूंघने
कैसी होती है
झोपड़ पट्टी की जीवन
तो मैंने देखा
दुनिया को
और दुनिया की सच्चाई को
दरिद्रता अभिशाप है
धरती का
जहाँ बदन ढकने के लिए तरसना पड़ता है
द्वार में बैठा शिशु क्या जाने?
पर जान जाएगा.. धीरे-धीरे
गृहस्थी सीखा देगी
उम्र से पहले बड़ा हो जाएगा
जब गरीबों के पास पैसे आते हैं
तो सबसे बदन ढकने के लिए कपड़े लेते हैं
इधर धनिकों के साथ उल्टा होता है
जब उनके पास पैसे आते हैं
तो बदन खुले हो जाते हैं।
बस यही अंतर है.. गरीब और अमीर में ।।
— चन्द्रकांत खुंटे ‘क्रांति’