कविता

जब कुछ लिख कहेंगी

कहां गया नारी सम्मान के लिए
कुछ दिन पहले तुम्हारा किया गया संकल्प,
या निकाल चुके हो अपने दिल से
इस बात का विकल्प,
वैसे भी इतिहास गवाह है कि
तुमने अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचा है,
जब,जहां,जैसे पाये
नारियों के हक़ अधिकार को
जब तब नोचा है,
आज फिर अपनी मनमानी दोहराओगे,
धूमधाम से नारी को जलाओगे,
दिन भर हुड़दंग करोगे
रंग गुलाल उड़ाओगे,
मुझे यकीन नहीं है तुम्हारी
लिखी कहानी कथाओं पर,
आधी आबादी को हासिये पर धकेल
कुछ नहीं दिये हो प्रथाओं पर,
हां जितना जलाना है जला लो
आज जमाना तुम्हारा है,
मुझे इंतजार उस दिन का रहेगा
जब नारियां तुम्हें जलायेगी कुछ लिख
और कहेंगी अब सारा जमाना हमारा है।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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