डिफॉल्ट

चौपाई

विविध


गंगा डुबकी चलो लगाएँ।
अमृत स्नान का पुण्य कमाएं।।
आखिर कल किसने देखा है।
लंबी कितनी ये रेखा है।।

महाकुंभ सौभाग्य हमारा।
संगम तट फैला उजियारा।।
हम भी डुबकी एक लगायें।
मुक्ति पाप से पाकर आयें।।

दिनकर जी का कहना मानो।
उनकी महिमा को भी जानो।।
समय व्यर्थ मत आप गँवाओ।
निज जीवन खुशहाल बनाओ।।

नीति नियम से दिनकर आते।
कभी नहीं वो हैं पछताते।।
समय पालना उनसे सीखें।
कहो कहानी कृष्ण सरीखें।।


चौपाई छंद – मनमानी


करो नहीं कोई मनमानी।
कहते हैं ज्ञानी विज्ञानी।।
अपना जीवन सफल बनाओ।
हर पल प्रभु के तुम गुण गाओ।।

जीवन को खुशहाल बनाओ।
मर्यादा को भूल न जाओ।।
आप सभी को खुशियां दोगे।
तभी आप खुशहाल रहोगे।।

मनमानी की आदत छोड़ो।
निज जीवन से नाता जोड़ो।।
मनमानी पड़ती है भारी।
काम नहीं आती है यारी।।


चौपाई छंद- पिचकारी
*
रंग अबीर-गुलाल लगाओ।
सब मिल होली आप मनाओ।।
रंग भरी पिचकारी लाओ।
रंग आप जमकर बरसाओ।।

खेल रहे हैं बच्चे होली।
सूरत उनकी लगती भोली।।
सब पर खूब रंग बरसाते।
उछलकूद हुड़दंग मचाते।।

आओ हम सब होली खेलें।
निंदा नफ़रत ईर्ष्या ठेलें।।
रंग भरी पिचकारी लायें।
गुझिया पापड़ जमकर खायें।।


चोपाई छंद – होली


आओ मिलकर रंग लगाएँ।
होली का त्योहार मनाएँ।।
भेद-भाव को मार भगाएँ।
दीन-दुखी को गले लगाएँ।।

नहीं रंग में भंग घोलना।
मीठे प्यारे शब्द बोलना।।
होली का सम्मान करेंगे।
यही भाव हम सभी रखेंगे।।

मर्यादा में खेलो होली।
नहीं बोलना तीखी बोली।।
मन के सारे भेद मिटाओ।
शीश झुकाओ गले लगाओ।।

वृद्ध और बीमार बचाओ।
रंग कभी मत पकड़ लगाओ।
माथे सबके तिलक लगाओ।
ले आशीष सदा मुस्काओ।।

होली का हुड़दंग अनोखा।
लगता सबको चोखा – चोखा।।
मौका कहकर मदिरा पीते।
अपनी दुनिया में सब जीते।।


चौपाई छंद- चौसर (211 भगण)

कुटिल शकुनि ने जाल बिछाया।
दुर्योधन को भी समझाया।।
पाँडव चौसर खेल बताया।
शकुनी ने निज जाल बिछाया ।।

फँसे जाल में सारे पाण्डव।
मगन बहुत थे सारे कौरव।
भंग हुई कुल की मर्यादा।
शर्मसार पाँडव थे ज्यादा।।

सभा मौन सब शीश झुकाए।
कौरव वंश बहुत मुस्काए।
पड़ी द्रौपदी पर ये भारी।
नींव महाभारत की डारी।।


चौपाई छंद – महिमा


भोले की महिमा है न्यारी।
कहलाते भोले भंडारी।।
शिव की कृपा सहज मिलती है।
रोग शोक सबका हरती है।।

मातु-पिता की महिमा जानो।
अंतर्मन से तुम पहचानो।।
हर दुविधा से बचे रहोगे।
ठोकर खाकर नहीं गिरोगे।।

महिमा की महिमा न्यारी है।
यारी भी पड़ती भारी है।।
आप सभी हम इसके प्यारे।
कभी दुलारे कभी पछारे।।

शिव की महिमा जिसने जानी।
वो ही बन जाता विज्ञानी।।
भोले-भाले औघड़दानी।
महिमा जिनकी सबने जानी।।


चौपाई छंद – पैसा


रिश्तों से पैसा है प्यारा ।
बिन पैसा झूठा है सारा ।।
पैसा कम तो मोल नहीं है।
मानो बिल्कुल बात सही है।।

पैसों ने है दुनिया बदली ।
काली चादर लगती उजली।।
पैसों ने आँखें ज्यों फेरी ।
दुर्गत होती जग में मेरी।।

मानवता पर पैसा भारी।
पैसों की ताकत है सारी।।
रहे दूर हो रिश्ते सारे।
बचकर रहते हैं बेचारे।।

रिश्ते पैसों पर पलते हैं।
इसके बिन वो कब चलते हैं।।
पैसों का है खेल निराला।
ईश्वर ही सबका रखवाला।।

जिसके पास नहीं है पैसा।
आज भाव वे जानें कैसा।।
सब जानें पैसे की माया।
पैसा पहले पीछे जाया।।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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