मुट्ठीभर धूल
मुट्ठीभर धूल हूँ मुझको उड़ा दो
बात-बेबात ही कोई सज़ा दो
दोष जग में किसी का हो, लेकिन
दोष सारा, सुनो, मेरा बता दो
ये जो जीवन है, ये कितना सुन्दर
इसमें जीने को पर, कोई वजह दो
है अदालत तो यहां पग पग पर
कोई निर्दोष हो, उसको विदा दो
कोलाहल से भरी हर दिशा है
मन में जो “गीत” है सबको सुना दो
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”