रिश्ता वही, सोच नई
लघुकथा
रिश्ता वही, सोच नई
“बेटा, क्या तुम्हें हमारी बेटी पसंद है ?” लड़की के पिता रमेश जी ने पूछा।
“जी हाँ।” लखन ने कहा।
“देखो बेटा, मैं लड़की का पिता हूँ। इसलिए मुझे अपनी बेटी की फ्यूचर का ध्यान रखते हुए आपसे कुछ चीजों की जानकारी चाहिए होगी।”
“जी बिल्कुल, पूछिए। आपको जो भी पूछना है।”
“बेटा, जैसा कि आपने बताया कि आप सरकारी कॉलेज में लेक्चरर हैं। मतलब नौकरी परमानेंट है। क्या आप मुझे अपना सिबिल स्कोर बता पाएँगे।”
“हाँ हाँ, क्यों नहीं। ये देखिए मेरा सिबिल स्कोर 898 है।” लखन ने एप में खोलकर दिखाया।
“वाओ, व्हेरी गुड। आपका सिबिल स्कोर तो मेरी सिबिल स्कोर से भी ज्यादा है। बेटा, हमारी ओर से ये रिश्ता पक्का है।”
“अंकल, क्या मैं जान सकता हूँ कि आपके कुल कितने बच्चे हैं ?”
“बेटा, मेरी दो ही बेटियाँ हैं। बड़ी बेटी की शादी तीन साल पहले ही कर चुका हूँ। अब दूसरी की आपसे…”
“सॉरी अंकल। मुझे ये रिश्ता मंजूर नहीं ?”
“पर क्यों बेटा? अभी तो आप कह रहे थे कि आपको मेरी बेटी पसंद है। फिर…”
“क्योंकि तब आपने मुझसे सिबिल स्कोर नहीं पूछा था और…”
“और क्या ?”
“जब आप सिबिल स्कोर देखकर दामाद पसंद कर सकते हैं, तो मैं भी इकलौती लड़की से शादी कर सकता हूँ। ऑफ्टरआल ये मेरे फ्यूचर का सवाल है।
_डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़