व्यंग्य – औरंगजेब महान
पुरानी कहावत सुन थी कि, मरा हुआ हाथी सवा लाख का होता है। नयी कहावत है, गड़ा हुआ बादशाह करोड़ों का होता है। हे औरंगजेब! इतिहास के पन्ने बेशक तेरे कुकर्मों लहूलुहान हैं। तू कितना दुष्ट, अत्याचारी, दुराचारी, अन्यायी और क्रूर था यह तो एक चलचित्र ने प्रमाणित कर दिया। तेरी मौत के बाद इस चलचित्र का अभिनेता अमर हो गया। निर्माता अरबपति हो गया। राजनीति में धार लग गयी। अल्पज्ञ समाज बहुज्ञ हो गया। और मेरे जैसे व्यंग्यकार की रचना धर्मिता को नया विषय दे गया। एक मुर्दा कितने लोगों के काम आ रहा है। इसलिए तू महान है। वाह! इस दुष्ट जगत में जहाँ तेरे वंशज परस्पर धन-संपति के लिए एक – दूसरे का गला काट रहे हैं। तेरे आदर्शों पर चल कर बेटा अपने बाप की कुर्सी हथिया लेता है। जेल में इसलिए नहीं डालता कि अब की राजनीति वोट पर चलती है, तलवार पर नहीं। गद्दारी की नवीन परिभाषा गढ़ने वाले राजकुँवर संसार में देश को बदनाम करने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं। अफसोस!नीचता में तू यहाँ पिछड़ गया!! तूने कभी सोचा था कि कब्र में गड़ने के सैकड़ों साल बाद तेरी खानदान इतनी बढ़ जायेगी? तेरे अंडे – पिल्लै आये दिन तेरे नाम से मर्सिया पढ़ेंगे? यहाँ तो अपने बाप को कोई नहीं पूछता। मुझे लग रहा है इस हिसाब से तू सचमुच महान था।
हे औरंगजेब! तू सचमुच महान है। मरने के बाद लोगों के काम आ रहा है। तेरी लाश भले ही कब्र से न निकाली गई हो, लेकिन उसकी सड़ांध से पूरा देश महक रहा है। मेरी तो अनेक बार वमन करने की इच्छा भी हुई लेकिन नहीं किया। देश स्वच्छता अभियान जो मना रहा है। तेरे नाम पर उलटी कर भला क्यों गंदगी में चार चाँद लगाऊँ? औरंगजेब तू महान है! क्योंकि तू व्यक्ति नहीं, धर्म बन गया है। इस देश में कुछ लोगों के लिए देश से ऊपर धर्म है। वे तुझे अपना बाप मानकर धर्म की ठेकेदारी कर रहें है। देश पर आँच आ जाए , चलेगा। पर धर्म का बाल भी बाँका नही होना चाहिए।
हे औरंगजेब! तू मर गया! मर के गड़ गया!! गड़ने के बाद उसमें कीड़े भी पड़ गये होंगे!!! पता नहीं तेरी रूह कहाँ गई? पर सैकड़ों साल बाद उसमें से उत्पन्न कीटाणु इस देश को खोखला करने पर तुले हैं। इन पर कौन सा कीटाणुनाशक छिड़का जाए? तू संगीत-साहित्य का दुश्मन था। लेकिन फिर तेरे लिए एक पंक्ति याद आ गई- मरने वाले तो शर्मिंदा हैं, जीने वाले कमाल करते हैं।”
— शरद सुनेरी