कविता

कर्म सिद्धांत

मुसीबत में_ कोई नहीं
सीता के रखवाले राम थे;
जब हरण हुआ तब कोई नहीं
द्रौपदी के पाँच पाण्डव थे;
जब चीर हरा तब कोई नहीं
दशरथ के चार दुलारे थे;
जब प्राण तजे तब कोई नहीं
रावण भी शक्तिशाली थे;
जब लंका जली तब कोई नहीं
श्री कृष्ण सुदर्शनधारी थे;
जब तीर लगा तब कोई नही
लक्ष्मण भी भारी योद्धा थे;
जब शक्ति लगी तब कोई नहीं
शरशैय्या पर पड़े पितामह;
पीड़ा का सांझी कोई नहीं
अभिमन्यु राजदुलारे थे;
पर चक्रव्यूह में कोई नहीं
सच यही है दुनिया वालो;
सँसार में अपना कोई नहीं
जो लेख लिखे हमारे कर्मों ने
उस लेख के आगे कोई नहीं।
“केवल कर्म ही अपना”

— हेमन्त कुशवाह

हेमंत सिंह कुशवाह

राज्य प्रभारी मध्यप्रदेश विकलांग बल मोबा. 9074481685

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