बाल कविता

प्यारा झूला

आहा! कितना प्यारा झूला।
लगा पार्क में न्यारा झूला।

विद्यालय से छुट्टी पाकर
शाम को झूला झूलूँ आकर
कई बाल साथी आ जाते
रखता भाईचारा झूला।

धीरे-धीरे पेंग बढ़ाता
हवा से बातें कर इतराता
बारी – बारी अवसर देता
सबका बहुत दुलारा झूला।

ऊपर जाता – नीचे आता
करना नित संघर्ष सिखाता
प्रसन्नता देकर सुख पाओ
गाता लप्पा लारा झूला।

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

117 आदिलनगर, विकासनगर लखनऊ 226022 दूरभाष 09956087585

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