कविता

रिश्तों की कदर

बदला ज़माना रिश्तों में आ गई खटास
आज रिश्तों का बना रहे सब उपहास
दिखावा ज़्यादा हो गया रिश्तों की नहीं रही कदर
धीरे धीरे खत्म हो रही रिश्तों की मिठास

क्यों भाई भाई का दुश्मन बन बैठा
ज़मीन जायदाद का ऐसा चला खेल
दूर हो गए एक दूसरे से खून के रिश्ते
कड़वाहट है मन में मुश्किल है होना मेल

आदमी अपने में ही जी रहा दूसरे की नहीं परवाह
पैसा रुतवा जब आ गया अहंकार पहुंचा आसमान
मैं हो गई भारी घमंड में हो रहा चूर
करतूतें तेरी छुप नहीं सकती देख रहा भगवान

कोई ज़माना था जब रिश्तों पर सब कुछ थे लुटाते
बड़ी शिद्दत से रिश्ते थे निभाये जाते
रुतवा पैसा सब देखा जाने लगा है अब रिश्तों में
अब कृष्ण और सुदामा जैसे रिश्ते कहाँ हैं नज़र आते

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

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