कविता

कविता दिवस

उपालंभ आलोचना, मत करिए सरकार।
कविता पढ़कर आप सब, देते रहिए प्यार।।

मेरे शब्दों की छाँव तले
कभी बैठ जरा क्षण दो क्षण,
हृदय में उपजे भावों से
सिञ्चित करती कण-कण,
मेरे अंतर्मन में भावों की
बहती रहती नित सरिता,
शब्द भाव को बुन-बुन कर
गढ़ देती फिर एक कविता,
स्नेह प्रेम अनुराग से
विनती करती यह वनिता।
क्या मन को छुई मेरी कविता?

कहीं बीज में हो अंकुरण
कभी कहीं जो खिले सुमन
या फूलों के ही पाश में
भ्रमर करते रहते गुंजन
निज उर के ही भावों का
करके रखती थी अवगूंठन
न जाने कब निकला उदगार
कर बैठा एक नवीन सृजन
सच-सच कहना तुम सखे
विनती करती यह नमिता।
सहमी सकुचाई सविता
क्या गढ़ लेती है कविता?

कभी छंद लिखूँ स्वच्छंद लिखूँ
सजल गज़ल दोहा मुक्तक,
लेखनी सफल होगी तभी
जब पहुँचे सबके हृदय तक,
माँ शारदे यह करूँ विनती
सक्रिय रहे मेरी तूलिका,
शब्द भाव का ज्ञान रहे
रचती रहूँ बस गीतिका,
आहत ना करूँ मर्म को
लेखनी में रहे शुचिता
अब कह भी दो हे मदने!
क्या पूर्ण हुई मेरी कविता?

— सविता सिंह मीरा

*सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com