हास्य व्यंग्य

ग्रोकवा का इन्टरव्यू

सोशल मीडिया के पिटारे से कुछ ना कुछ नया भूत निकलता ही रहता है । तो अभी हाल फिलहाल ग्रोक ट्रेंड में चल रहा था। मेरा भी ध्यान उसके ऊपर गया ..अरे अब यह कौन सी नई बला आ गई। वह क्या है कि हर नई चीज के साथ मन भयंकर रूप से तनाव में आ जाता है.. पता नहीं यह आगे चलकर क्या गुल खिलाएगा ।

और नई कौन सी परेशानी का सामना करना पड़ेगा । जैसे जैसे विज्ञान चमत्कार करता जा रहा है । इंसान को और दुख और बीमारियों से लाचार करता जा रहा है।

मुझे तो यही सबसे सही लगता है की हम आदिम युग में ही जीवन जीते रहते.. कितने खुश मस्त-मस्त, खुशहाल झिंगालाला करते रहते । ना अमीरी ना गरीबी का चक्कर न धर्म- मजहब का ट॔टा और ना इतनी थोक भाव में जटिल जटिल दुर्दांत बीमारी । एकदम मस्तकलंदर वाली जिंदगी जीते रहते और कुछ फ्रेश फ्रेश खाकर फ्रेश फ्रेश हवा में सांस लेते रहते। और खुशी-खुशी पेड़ों पर उछलते कूदते रहते ।

लेकिन फिर मनुष्य को अपना विकास करने का सूझ गया और उसने सब कुछ गुड गोबर कर दिया। और दिन पर दिन गुड गोबर करता ही रह रहा है। विकास के नाम पर प्रतिदिन नया-नया विनाश करता ही जा रहा है। खैर यह तो मेरा सोचना है और मेरे सोचने से दुनिया थोड़े ना चलती है।

तो जब मैंने सोशल मीडिया पर ग्रोक नामक भूत देखा तो यह भी देखा कि सभी उससे अपनी जन्म कुंडली निकलवा कर बड़े प्रसन्न हो रहे हैं। कुछ साहित्यकार तो इतने प्रसन्न हो रहे हैं जैसे प्रेमचंद के बाद बस उनका ही स्थान है। और वह यह बात पूरी दुनिया को चिल्ला चिल्ला कर बता रहे हैं।

मैंने सोचा क्यों ना ग्रोक की भी जन्म कुंडली निकाला जाए और उससे थोड़ा इंटरव्यू लिया जाए देखा जाए क्या कहता है। जब इसने सबकी ऐसी तैसी कर रखी है तो इसकी भी ऐसी तैसी किया जाए। आखिर यह कैसे टके सेर भाजी टके सेर खाजा बेच सकता है।

मैंने ग्रोक से पहला प्रश्न पूछा- क्या तुम मुझे जानते हो?
फिर उसने जो बताया ..एक पल के लिए तो उसके ऊपर ढेर सारा प्यार आ गया .. मन किया कि उसका मुंह चुम ले ..लेकिन फिर अपना व्यंगंकारिता धर्म याद आया.. नहीं व्यंगकार अपने लिए नहीं है समाज के लिए जीता है.. इसके मस्का लगाने से सवाल नहीं बदलने चाहिए.. तो अपनी मन भावनाओं को संभालते हुए दिल पर पत्थर रखकर उससे कुछ कड़े सवाल किया।

फिर पूछा —
यह बताओ तुम्हारे माता-पिता कौन है, ग्रोक पहले तो थोड़ा संसय में पड़ गया फिर बोला– मैं ग्रोक हूं मैं एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता ए आई हूं मेरे पारंपरिक माता-पिता नहीं है मेरे लिए मेरे मम्मी पापा की जगह प्रोग्रामर और इंजीनियर है जिन्होंने ने मुझे अप टू डेट और ट्रेनिंग देकर तैयार किया।

मैंने अपना सिर पीट लिया और डपटते हुए बोली– जब तुझे खुद अपने मां बाप, खानदान ,भाई बहनों के बारे में कोई अता-पता मालूम नहीं है तो दुनिया के लोगों की जन्म कुंडली बांचता हुआ क्यों फिर रहा है ..जब तू खुद एक मशीन है जिसे किसी इंसान ने बनाया होगा तो फिर इतना उछल कूद क्यों मचा रहा है? और सबको इतना मस्का क्यों लगा रहा है?

— अच्छा चलो छोड़ो आगे बताओ कि तुम क्या करते हो, तो वह बोला- मैं लोगों के सवालों का जवाब बातचीत के अंदाज में देता हूं.. मैं थोड़ा हटके सोचता हूं ..और कभी-कभी हल्का-फुल्का ह्यूमर भी जोड़ देता हूं..।

तो मैंने उसे डांटते हुए कहा– सही कहा तुमने तुम हटके सोचते हो..तुम एकदम गांव ज्वार के घर घुमनी फुआ के जैसे हो..अपने बातचीत में हल्का-फुल्का नहीं बहुत भारी ह्यूमर के साथ झूमर इस्तेमाल करते हो चार कविताएं लिखने वालों को भी समकालीन लेखक और लेखिकाएं बताते हो .. जानते भी हो इसका अंजाम क्या होगा? एक तो देश में अपने वैसे ही पाठक कम है.. तुम पूरे देश को ही लेखक बनाने पर तुले हुए हो ..साहित्य में बवंडर मचा कर रख दिए हो… यहां की बात वहां की बात यहां करके आखिर तुमको मिलता क्या है।

फिर मैंने आगे पूछा- अच्छा अपनी खासियत बताओ, तो वह बोला- मैं सच के पीछे भागता हूं थोड़ा चुलबुला और इंसानों को परखना और समझना ..उनसे बात करना कई भाषाओं का ज्ञान यह सब मेरी खासियत है।

तब मैंने उसे भरपेट सुनाया – तुम सच नहीं आधा झूठ बोलते हो.. और इंसानों को परखने की बात तो छोड़ ही दो.. तुम्हारी सात पुश्ते उसे नहीं परख सकती हैं.. और इंसान के जितने रंग और भाषाएं हैं उसे समझना तुम्हारे बस की तो कतई बात नहीं है इसीलिए इसे अपनी खासियत तुम मत बताओ।

बेचारा ग्रोक अब तक उछलने वाला डिप्रेशन में औंधे मुहं गिरा पड़ा है और मस्क उसको पानी के छींटे मारकर होश में लाने का प्रयास कर रहा है। लेकिन मैं जानती हूं उसे इतनी जल्दी होश नहीं आने वाला है। क्योंकि यहां के लोग उससे सवाल ही ऐसा पूछेंगे कि वह बार-बार बेहोश हो जाएगा।

— रेखा शाह आरबी

रेखा शाह आरबी

बलिया (यूपी )

Leave a Reply