छोड़ दीजिए
बे बात यूं ही मुस्कुराना छोड़ दीजिए
नजरों से नजर को चुराना छोड़ दीजिए
शम्मा जला के प्यार की यूं मत बुझाइए,
तकलीफ दे के दिल दुखाना छोड़ दीजिए
तदबीर कुछ तो कीजिए उठिए जरा हुजूर,
तकदीर पे तोहमत लगाना छोड़ दीजिए
मगरूरियत को छोड़ के झुकना तो सीखिये,
हर बार मुझको आजमाना छोड़ दीजिए
सूरज की रोशनी को कोई बांध सका क्या ?
अब बंदीशें मुझ पर लगाना छोड़ दीजिए
सत्कर्म की लौ से ‘मृदुल’ मिटता है अंधेरा,
आलस प्रमाद से निभाना छोड़ दीजिए
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”