गीतिका/ग़ज़ल

छोड़ दीजिए

बे बात यूं ही मुस्कुराना छोड़ दीजिए
नजरों से नजर को चुराना छोड़ दीजिए

शम्मा जला के प्यार की यूं मत बुझाइए,
तकलीफ दे के दिल दुखाना छोड़ दीजिए

तदबीर कुछ तो कीजिए उठिए जरा हुजूर,
तकदीर पे तोहमत लगाना छोड़ दीजिए

मगरूरियत को छोड़ के झुकना तो सीखिये,
हर बार मुझको आजमाना छोड़ दीजिए

सूरज की रोशनी को कोई बांध सका क्या ?
अब बंदीशें मुझ पर लगाना छोड़ दीजिए

सत्कर्म की लौ से ‘मृदुल’ मिटता है अंधेरा,
आलस प्रमाद से निभाना छोड़ दीजिए

— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016

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