कविता

वक़्त

वक़्त के सुनहरे झांसे में न आ

बेवफ़ा है यह बड़ा

आज तुझसे कह रहा तेरा हूं मैं

कल इसने मुझसे भी यही कहा था  

तेरा हूं मैं

न ये तेरा है

न ही ये मेरा है

इसके सहारे लोगों को 

आकाश की बुलंदियों को छूते देखा

तो अर्श से फर्श पर आते भी देखा

यह किसी का न हुआ आज तलक

यह तो बस एक छलावा है

जो रहता नहीं है बंध कर

किसी एक के साथ

वक़्त जो मिला है 

रंग लें खुद को उसमें 

कल आए कि न आए

आज में रंग ले अपने आप को

वक़्त सिर्फ एक धोखा है

वक़्त सिर्फ एक धोखा हैं

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020

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