ग़ज़ल
अब क्या बताएं आपको क्या क्या बदल गया
बदला कहीं पे दिल कहीं चेहरा बदल गया
मग़रिब की चाल ढाल के पैबंद लगा कर
तुमने समझ लिया कि ज़माना बदल गया?
क्या कहा, फिर से कहो आता नहीं यक़ीन
नम्बर तुम्हारे फोन का, अच्छा, बदल गया?
महफूज़ जिसके दम से थे गुंचा ओ गुल सभी
गुलशन का वो निज़ाम तो कब का बदल गया
ओढ़े रहे नमिता रवायत की एक रिदा
हम ही बदल सके ना ज़माना बदल गया
— नमिता राकेश