गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अभी मेरी किसी दिल में समाने की तमन्ना है।
किसी पर प्यार अपना ही लुटाने की तमन्ना है।।

मिले जो दर्द मुझको भी उसे अपना समझ लूँ मैं।
किसी टूटे हुये दिल को हँसाने की तमन्ना है।।

तड़पने क्यों लगे कोई रहे ही तब कभी तन्हा।
उसी के साथ दो पल ही बिताने की तमन्ना है।।

कहीं कोई न फैलाये सुनो अब हाथ अपना ही।
उसी की अब यहाँ झोली भराने की तमन्ना है।।

मिले अब तो किसी को भी नहीं आलम जुदाई का।
मिलन के गीत ही अब तो सुनाने की तमन्ना है ।।

सभी अब छोड़कर ही भेदभावों को मिलें सबसे।
अभी तो देश में नफ़रत छुड़ाने की तमन्ना है।।

अभी तक पा दुआ माँ की बढ़ा पग हर घड़ी आगे।
तरक्की की मिली मंज़िल जताने की तमन्ना है।।

दिये हों प्राण कर रक्षा शहीदी है दिवस आया।
सभी दर पर अभी दीपक जलाने की तमन्ना है।।

कभी जो चाहते थे वह मिला है इस धरा से ही।
अभी तो देश पर खुद को मिटाने की तमन्ना है।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’

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