माटी अब भी पूछती
पैदा क्यों होते नहीं, भगत सिंह से वीर,
माटी अब भी पूछती, कब जागेगी पीर?
स्वप्न सिसकते रह गए, कहाँ गई वह बात,
चिंगारी तो जल रही, राख हुई सौगात।
नारे मंच पर गूंजते, हुई ज़ुबां है मौन,
जोश बिखरकर रह गया, जज़्बा लाये कौन।
होते हैं भाषण बहुत, पर खामोश ज़मीर,
शब्द बचे हैं युद्ध के, गए कहाँ रणधीर?
भारत माता पूछती, कौन बने कुर्बान,
लाल हुए थे जो कभी, लगते अब अनजान?
सबके हित की बात का, बुझने लगा उबाल,
सत्ताओं की साँकलें, बाँध रहीं भूचाल।
सत्ताओं की साँकलें, बाँध रहीं तक़दीर,
ख़ुद को ख़ुद से हारकर, भारत खड़ा अधीर।
— प्रियंका सौरभ