ईमानदारी से स्वीकारें – हम ही हैं आवारा, लुच्चे-टुच्चे और लफंगे, आलतू-फालतू नाकारा नुगरे, और आतंकवादी
जरा सोचें कि भगवान द्वारा दी गई बुद्धि का हम कितना इस्तेमाल करते हैं। हम सारे भेड़ों की रेवड़ों या भीड़ का हिस्सा होकर रह गए हैं। बात भगवान के फोटो/वीडियो की हो या फिर किसी उपदेश/विचार की, या फिर दुनिया की हलचलों या समाचारों की।
हमारा अपना मौलिक सृजन कुछ कुछ नहीं। भगवान द्वारा प्रदत्त बुद्धि का इस्तेमाल कभी नहीं करते। इससे हमारी बुद्धि कुण्ठित हो गई है, दिमाग में जंग लग गया है और इस कारण अब कुछ नया सोचने और करने का माद्दा ही नहीं रहा, तभी तो इधर का कचरा जमा कर उधर परोसते रहने, विचारों, फोटो/वीडियो आदि को अपने नाम चिपका कर फोरवर्ड/शेयर करने की मजबूरी से हर घिरे हुए हैं।
मुफतिया कुलियों की तरह माल को इधर-उधर करने, डस्टबिन की तरह पूरी दुनिया का कचरा इकट्ठा कर अपने नाम से औरों तक पहुंचाने में दिन-रात भिड़े हुए हैं।
यह सब चोरी और डकैती का ही एक रूप है। खुद कुछ करें, लिखें और तब प्रस्तुत करें। यह जरूरी नहीं कि रोजाना कचरा पोस्ट कर-करके लोगों के समक्ष अपनी विद्वत्ता और जागरुकता सिद्ध करते ही रहें।
दुनिया भर में एक ही एक तरह का कचरा हम लोग कितनी बार पढ़ते, जमा करते और अपने नाम से कॉपी/पेस्ट या फोरवर्ड/शेयर करने की महामारी के शिकार हैं।
यह हो सकता है कि हमारी जिन्दगी फालतू और टाईमपास हो, लेकिन दुनिया में खूब सारे लोग हैं जो अपने लक्ष्य में जुटे हुए हैं, जिनके लिए एक-एक सैकण्ड कीमती है। लेकिन हम हैं कि अनचाहे कचरा फेंकते रहने के आदी हो गए हैं।
भगवान के लिए यह चोरी/डकैती और कचरा परिवहन का काम छोड़ें। खुद भी सुखी रहें और दूसरों की भी शान्ति भंग न करें।
यह संभव है कि आपके अपने घर वाले आपको कॉपी-पेस्ट, शेयर/फॉरवर्ड और रह-रहकर कुछ-कुछ सैकण्ड में स्टेटस चैक करने की लत या महामारी से प्रसन्न हों, सुकून पाते रहें कि चलो कहीं न कहीं ये बिजी हो गए हैं अन्यथा घर वालों को तंग करते, उन पर गुस्सा करते, झल्लाते और घर की शान्ति भंग करते रहते, इससे तो अच्छा है कि ये सारे के सारे मुन्ना भाई और मुन्नी बाइयां व्हाट्सअप और फेसबुक आदि पर लगी हुई हैं।
हालात ये हो गए हैं कि जिन लोगों को घर या पड़ोस के लोग तक नहीं मानते, वे एडमिन और ग्रुप संचालक बनकर नेतृत्व करते हुए समुदाय और समूहों के झण्डाबरदार बने हुए अपने-अपने अहंकारों की पालकियों में सवार होकर इतरा रहे हैं और अपने जैसे ही लोगों को साथ लेकर गिराहों के रूप में छाए हुए हैं। लगता है कि जैसे भूत-पलीतों की बारात में नाचने-गाने वालों और तालियां बजाने वालों का कोई प्रोसेशन ही आता-जाता रहा हो।
जिनके खोटे सिक्के और जंग लगी चवन्नियाँ कहीं नहीं चल पाती, जो गुजरे जमाने के लोग रहे हैं, यमराज के वहां से जिनका सम्मन निकल चुका है, जिन्हें कोई नहीं पूछता, जिनके लिए पढ़ाई-लिखाई और परिश्रम करना, पुरुषार्थ से कमाई करना अपने बूते में नहीं रहा या फिर जिनके लिए दुनिया के दूसरे सारे शौक-मौज से पेट-पिटारा भर गया हो, उन प्रजातियों के सारे के सारे लोग यही कर रहे हैं।
इनकी हरकतों का खामियाजा बेचारे वे लोग भुगत रहे हैं जो पुरुषार्थी और परिश्रमी, सात्विक और सज्जन हैं और जो लोग संसार में पैदा होने के लक्ष्य को अच्छी तरह समझते हैं, जानते हैं। इन लोगों के घर-आँगन रोजाना खूब सारा कचरा जमा होने लगा है।
हम जिसे पढ़ना नहीं चाहते, जिन विषयों के बारे में हमारी कोई रुचि नहीं है, जिन बुरे और दुष्ट लोगों के दर्शन तक हम नहीं करना चाहते, जिन्हें सुनना-देखना और जिनके बारे में चर्चा करने से पाप लगता है, वे सारी घटनाएं और किरदार हमारी आँखों के सामने वे लोग ऎसे उछाल रहे हैं जैसे कि सब्जी मण्डी या कसाईघरों में सस्ती नीलामी हो रही हो।
जो लोग कभी मन्दिर या धर्मस्थल नहीं जाते, कहीं भी मन्दिरों या जरूरतमन्दों को दान नहीं करते, समाज के लिए धेला भर निकालने की उदारता नहीं रखते, कृपणता के मामले में नामदार हैं, न कहीं किसी अच्छे काम या अभियान में समय देते हैं, न श्रम।
जो समाज के किसी काम नहीं आ सकते, दिन-रात निन्दा और आलोचना में रमे रहते हैं, जिनके लिए धर्म, कला, साहित्य और संस्कृति और समाजसेवा के प्रति कोई रुचि नहीं है वे सारे के सारे लोग सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी सत्ता चलाने में भिड़े हुए हैं।
इन्हें कोई सरोकार नहीं है कि इनकी हरकतों के कारण से लोगों का कितना समय बर्बाद हो रहा है, कितने लोग परेशान होते हैं और कितना दुःख भोग रहे हैं।
इन सारी चर्चाओं के अन्त में यह निष्कर्ष है कि जो लोग ऎसा कर रहे हैं उनकी सौ जन्मों तक गति-मुक्ति नहीं होगी क्योंकि जीवन की अंतिम साँस तक भी ये लोग अपनी इस लत को छोड़ नहीं पाते। इसलिए ये सारी अतृप्त आत्माएं भूत-प्रेत ही बनेंगी। मुक्ति की कामना व्यर्थ ही है।
इन सारी किस्मों के भावी भूत-प्रेतों और जिन्नों के लिए अभी से कुछ करना होगा वरना हमारी आने वाली पीढ़ी परेशान और नाकारा होने का खतरा अभी से मण्डराने लगा है।
— डॉ. दीपक आचार्य