गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दौर खामोशी का है मगर धड़कन में शोर है
नज़र से हो बयां जज़्बात तो ये बात और है।

पतंग ए दिल के अरमां आसमां में मचलते हैं
मगर अफसोस मुफलिसी की नाज़ुक सी डोर है।

मौसम ए धुंध का पहरा सूरज निगल गया
आम के पेड़ पर छाया हुआ सोने सा बौर है।

ये दुनिया है बड़ी संगदिल रास आई नहीं हमको
तुम्हारे दिल में रहना है कहो क्या दिल में ठौर है।

किसी से क्या गिला हमको हम अपनी धुन में जीते हैं
फर्क क्या है मुझे संग कोई मोर है या चोर है।

झुका दें हर जगह पर सर गवारा हम नहीं करते
मगर मालूम है हमको जानिब झुकाने का दौर है

— पावनी जानिब सीतापुर

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर

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