कविता

बस यूँ ही

हम महिलाएं कुछ भी करने के पहले हजार बार सोचते हैं, बाल पक गए हैं उन्हें डाई करूं तब कहीं जाऊं, ये चटक लाल है, थोड़ा हल्के रंग के कपड़े पहने यह नहीं वह, वह नहीं है यह, अरे सब सोच को एक किनारे हटाओ और अपनी जिंदगी जियो उम्र का हर दौर हंसी जी लो अपनी जिंदगी।

क्यों डरती हो सखी
थोड़े केश ही तो है पके,
क्या हुआ जो कदम थोड़े से हैं थके
उम्र का हर दौर हंसी
जियो इसे हँसी खुशी।
किसका डर है तुम्हें
बेवक्त मुस्कुराओ
खुद को थोड़ा गुदगुदाओ,
हम सब यह तो करना चाहे
पर रुक जाते, ढूंढते बहाने।
कोई हमारा क्या बिगाड़े
क्या आ जाती हमारे आड़े?
बेवक्त नाचो गाओ
बच्चों की तरह खिलखिलाओ,
पानी में छपाक से एक कूद लगाओ।
छूने दो बारिश की बूँदों को तुम्हें
भर लो आँचल में बारिश का पानी
जी के देखो यही है जिंदगानी।
तुम अपनी उम्र का दायरा मत करो तय
बस अपनी मस्ती करो निश्चित
और है भी तो यही उचित।
अधपके केशों में भी लगोगी हसीन
जियो हर एक पल
बीता कल आता क्या कही।
हंसो खिल खिलाओ
भिगो बारिश में तन मन भिगाओ
बेबसी को बीच में ना लाओ
मत सकुचाओ सखी
मिलती है एक बार जिंदगी।

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]

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