कविता

आज का युवा

आज का युवा जोशीला, व्यस्त, रखे अकडू पना,
समझे अपने को ज्यादा समझदार, हठीला, तना,
दो चेहरे रखे अपने साथ, समाज से ये डरता हुआ,
चिंताओं के मकड़जाल में फंसा अनसुलझा हुआ ।

बाहरी चकाचौंध से लबालब, परिवार से उखड़ा रहे दूर,
चार दिन में ही होना चाहे, झटपट जग में खूब मशहूर,
सपनों की दुनिया विशाल, पर ये मेहनत से कतराता,
भेड़़चाल, खींचातानी एक दूजे के पीछे दौड़ता भागता ।

इनमें से जो संभल गए, उन्होंने जिम्मेदारियां उठा ली,
उम्र से पहले जिंदगी अपनी बोझिल, नीरस बना ली,
समय नियोजन की कशमकश अधूरी इच्छाएं भी संग,
शारीरिक, मानसिक परेशानियां लिए लड़ रहे ये जंग ।

कुछ में ही बची है आज खुशबू वो पुराने संस्कारों की,
कुछ ने राह पकड़ी कभी न लौटने वाली रफ्तारों की,
कुछ हो गए हैं भ्रमित अनगिनत कल्पनाओं में जा डुबे,
कुछ हो गए विस्मित परिस्थितियों से पूरे न हुए मंसूबे ।

भ्रष्टाचार की कालिख ने युवाओं की कमर ही तोड़ दी,
रोजगार की कमी से दम तोड़ राह उसूलों की छोड़ दी,
तेज विकास हर कोई चाहता मगर अज्ञानता है व्याप्त,
तूफ़ानी बवंडर में “आनंद” भीतरी शक्ति हो रही समाप्त ।

सत्य को नजर अदांज किए भाग रही जिंदगी की गाड़ी,
क्या हो पायेगा राष्ट्र का विकास जब युवा ही हो अनाडी़,
एकजुट हो इस ताकत को सही ओर आगे बढा़ना होगा,
उचित मार्गदर्शन कर देश को समृद्धशाली बनाना होगा ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु

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