कविता

कविता : तुम्हारा खत

एक खत तुम्हारा
आज भी सहेज रखा है मैंने
हर शब्द में झलकता है तुम्हारा प्यार
खुशबू मिलती है तेरी जुल्फों की
अनायास सामने आ जाता है तुम्हारा चेहरा
तुम्हारी बड़ी- बड़ी आँखें
तुम्हारी मासूमियत,तुम्हारी नादानी
तुम्हारी सादगी
सभी प्रतिबिंबित हो जाती हैं
इस गुलाबी खत में।
कुछ भ्रम -सा है
यह मेरी नादानी भी
बरसों बीत गए
पर याद है कि
जेहन में बिल्कुल ताजा है
भूल जाता हूँ कि
उम्र ठहरती नहीं
फिर भी एक
सुकून -सा देता है
तुम्हारा यह पत्र।

— निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]

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