नव संवतसर आया है
होगा नवल विहान सजीला नव संवतसर आया है |
चहुँ दिस है मधुमास प्रफुल्लित पावन अवसर आया है |
शीत न गर्मी वातायन में,महक रही अमराई है |
रंग-रंग के सुमन खिले है, पवन बहे सुखदाई है |
गौरैया आँगन में फुदके, मधुप गान गुंजाया है |
होगा नवल विहान सजीला नव संवतसर आया है |
मातु भवानी सिंह पीठ चढ़, नवल वर्ष में घर आती |
पुरवाई घर द्वार बुहारे, कोयल अभिनन्दन गाती |
राम जनम की बजा बधाई, नवल वर्ष हर्षाया है |
होगा नवल विहान सजीला नव संवतसर आया है |
अमलतास किंशुक पलास ने मनहर छटा बिखेरी है |
चिलबिल पाकड़ नीम सज गए, बोगनबेलिया फूली है |
जूही चम्पा गुड़हल गेंदा माँ का भवन सजाया है |
होगा नवल विहान सजीला नव संवतसर आया है |
खेतो में पक गई बालियां, सरसों भी गदराई है |
अमराई में बौर लद गए शुभता चहुँ दिस छाई है |
कहीं हो रहा ब्याह सगाई बाजे कही बधावा है |
होगा नवल विहान सजीला नव संवतसर आया है |
नव दुर्गा घर घर में आकर, सुख सौभाग्य बढ़ाती हैं |
राम जनम की पावन बेला “मृदुल” गीत नव गाती है |
प्रकृति नया परिधान पहनकर लाती शीतल छाया है |
होगा नवल विहान सजीला नव संवतसर आया है |
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”
लखनऊ