अमानवीय था आकलन
क्या? लिखूं 4 महीने का चिंतन-मनन,
संवेदनहीन व अमानवीय था आकलन।
यूँ पीड़िता के स्तनों-अंगों को पकडना,
ये सुनों फिर पायजामे का नाड़ा तोडना।
दुष्कर्म या दुष्कर्म का ही था ये प्रयास,
क्या? यहॉ तक ही सीमित होते कयास।
क्या? लिखूं 4 महीने का चिंतन-मनन,
संवेदनहीन व अमानवीय था आकलन।
मामला नाबालिग से दुष्कर्म का गंभीर,
मैं भी पूछ रहा लाज बचाओ हे! रघुवीर।
लड़की को ‘पुलिया‘ के नीचे ही ले जाना?
इन सभी हरकतों में दुष्कर्म था ठिकाना।
क्या? लिखूं 4 महीने का चिंतन-मनन,
संवेदनहीन व अमानवीय था आकलन।
दुष्कर्म की नीयत अथवा मंशा साफ थी,
न्याय के नाम यह अनैतिकता राख थी।
इस गलत फैसले से तराजू में साख थी,
‘न्यायिक सिद्धांतों‘ से परे यह बात थी।
क्या? लिखूं 4 महीने का चिंतन-मनन,
संवेदनहीन व अमानवीय था आकलन।
ये ‘वी द वूमन ऑफ इंडिया‘ की अर्जी,
अब न चलेगी इन दुराचारियों की मर्जी,
सर्वाेच्च अदालत ने स्वतः लिया संज्ञान,
आज हम करते प्रशंसा न्याय है ‘महान्‘।
(संदर्भः सुप्रीम कोर्ट-रेप पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी असंवेदनशील)
— संजय एम तराणेकर