चल फिर मिलते हैं
दो दोस्त,
एक साथ पढ़ाई,
एक साथ शैक्षणिक प्रगति,
एक सामान्य,
एक में महत्वाकांक्षा अति,
हुई पढ़ाई पूरी,
पर जिंदगी की असल परीक्षा अधूरी,
एक जल्द कुछ करना चाहता था,
एक सोच समझ आगे बढ़ना चाहता था,
पहले ने किसी और की
दरी उठाना शुरू किया,
कालांतर में बड़े नेता का
महत्वपूर्ण पद हासिल किया,
दूसरे ने रात दिन
अलख जगाना शुरू किया,
खुद को समाज और मिशन को सौंप दिया,
पहले वाले की एक आवाज पर
सैंकड़ों लोग इकट्ठे होते थे,
जिनके सपने उनके पीछे पूरे होते थे,
दूसरा इकट्ठा होने का आह्वान
कभी नहीं करते थे,
जागृति फैला दूसरों को जगाते
और खुद भी संवरते थे,
जब दोनों मिलने पहुंचे तो
दृश्य अद्भुत था,
पहला बेरोकटोक कहीं भी जाता था,
दूसरा समस्या देख
उसे दूर करने रुक जाता था,
आप ही बताओ कौन कामयाब है,
एक सत्ता का दबंग
दूसरा जन जन की आवाज है।
— राजेन्द्र लाहिरी