नवसंवत्सर 2082 पर अंतस् की 68वीं काव्यगोष्ठी

नवरात्रि और नवसंवत्सर 2082 के शुभ अवसर पर आयोजित अंतस् की 68वी काव्य-गोष्ठी काव्य के विभिन्न रस-रंगों सा आच्छादित रही।
इस गोष्ठी में प्रसिद्ध कवि -शायर डॉ आदेश त्यागी की अध्यक्षता और पूनम माटिया का रोचक व् सुगठित संचालन रहा। मुख्य अतिथि कोलकाता से श्री कृष्ण कुमार दुबे सहित लगभग 15 कवि-कवयित्रियों की गरिमामयी उपस्थिति और शानदार काव्य-प्रस्तुति से सराबोर गोष्ठी अबाधित दो घंटे चली। सरस्वती वंदना श्रीमती सोनम यादव ने प्रस्तुत की|
वीणा वादिनि अक्षरा,हे ज्ञान रूप प्रकाशिनी, मां शारदे वरदायिनी। मां शारदे वरदायिनी।
सर्वश्री आदेश त्यागी, पूनम माटिया, कृष्ण कु.दुबे, सोनम यादव, नीलम वर्मा, रचना निर्मल, दुर्गेश अवस्थी, डी. पी सिंह, मंजू गुप्ता, अरुणा गुप्ता, पूनम ‘सागर’, सुशीला श्रीवास्तव, सरिता गर्ग ‘सरि’ तथा वैशाली रस्तोगी(लखनऊ) सभी ने मनभावन कविताएं, गीत, ग़ज़लें, दोहे, माहिया, हास्य-व्यंग्य रचनाएं प्रस्तुत कीं।स्वागत उद्बोधन में दुर्गेश अवस्थी अंतस् की अनवरत, अबाधित गतिविधियों से सभी को परिचित करवाया| डॉ आदेश त्यागी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सहभागी कवि-कवयित्रियों को उनके काव्य-पाठ की समीक्षा करते हुए कविता की बारीकियों के सन्दर्भ में कुछ बिंदु बताये साथ ही अगली किसी गोष्ठी को काव्य की एक विधा पर केन्द्रित कर चर्चा करने का सुझाव रखा|
भांवरों को समर्पित हवन दे चुका/मैं किसी और को अब वचन दे चुका(आदेश त्यागी); चैत्र मास की तिथि प्रथम,उदित होय दिनमान/नवल वर्ष का आगमन, देवी का गुणगान(पूनम माटिया); साथ फूलों के जैसे ख़ार आए/ज़िन्दगी में सितम हज़ार आए(कृष्ण कुमार दूबे);देखता हूँ कभी जब ये तेरे नयन/इक नयन शुभ लगे लाभ दूजा लगे(दुर्गेश अवस्थी) नवरूप देवी वंदनीय/छलकता आँखों में माँ का प्यार भी तो है (नीलम वर्मा); कहां आ गए चलते -चलते और कहां जाना/भूल गए धरती की खुशबू, चिड़ियों का गाना(सोनम यादव); ईडी है इक हाथ में, ईदी दूजे हाथ/अब तुम ख़ुद ही तय करो, कैसे आना साथ(डीपी सिंह); दुखियों की ढाल बन,पतितों का काल बन/नवरूपधार अंबे धरती पे आई है(रचना निर्मल);अब मां के सानिध्य में, बीतेंगे दिन रैन/शुद्ध होकर तन मन से, पायेंगे सुख चैन(पूनम सागर);दुनिया कंकरीट का गमला(मंजु गुप्ता); तुम आद्या भी, तुम आद्रा भी/ तुम चंडीभी, कामाख्या भी(अरुणा गुप्ता); थी आरज़ू तुम्हारी, पर पा सकी न तुम को/अगर और जीते रहते, यही इन्तिज़ार होता(सुशीला श्रीवास्तव); हर करम को न अपने मिटा दीजिए/ प्रेम की बात दिल को बता दीजिए(सरिता गर्ग);तुम्हारे भीतर अग्निकुंड से स्नान करने वाली पद्मिनी की अग्नि है(वैशाली रस्तोगी) … अद्भुत काव्य प्रस्तुतियों का सबने आनंद लिया|
अन्य कई अतिथि एवं अंतस् के संरक्षक नरेश माटिया सुधि श्रोता के रूप में साथ रहे|