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प्रकृति के साथ रमें, आओ नव वर्ष मनाएँ

            यां तो नव वर्ष हम साल भर में अनेक बार मनाते हैं लेकिन उस नव वर्ष का अपना अलग ही महत्त्व है जिसमें हमारी प्रकृति भी उल्लास के साथ अपना स्नेहसिक्त आँचल फैलाये नवोन्मेषी भावों और विचारों का अवगाहन करती है।            पंच तत्त्व अपनी पूरी ताजगी के साथ जन-जन को ऊर्जित करते हैं, रिक्त तत्वों के सम्पूर्ण पुनर्भरण के योग बनते हैं। नव पल्लवों का माधुर्य भरा अनुनाद हवाओं को अजीब सा संगीत देता है। चारों तरफ आबोहवा और माहौल ऐसा कि पिण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक और सरजमीं से लेकर व्योम तक आक्षितिज पसरा होता है वह सब कुछ जो तन-मन को प्रफुल्लित करने वाला है।

            यह नव वर्ष सिर्फ हम ही नहीं मनाते। हमारी पुरानी पीढ़ियों का इतिहास, पुरोधाओं की प्रेरणा व नित प्रगति के लिए चरेवैति-चरेवैति का वरदान साथ होता है।             हमारी अपनी माटी की सौंधी गंध हर तरफ छायी होती है। संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों की त्रिवेणी का समावेश मानवी परंपरा की ओजस्वी धाराओं के प्रवाह को थोड़ा और अधिक वेग देता प्रतीत होता है।             यही वह शुरूआती चैत्र माह है जिससे शुरू होता है हमारा नव वर्ष। और वह भी मातृभूमि के गौरवगान के साथ आँचलिक पर्व-त्योहारों, जयंतियों के उत्साह के साथ। यानि वह समय जब सृष्टि का हर तत्त्व  पूरी चेतना, विराट ऊर्जा और ताजगी के साथ आनंद अभिव्यक्त करता हुआ अपनी ही मौज-मस्ती में खुद भी नर्तन करने लगता है और परिवेश में भी ऐसा मोहक वातावरण निर्मित कर लेता है कि भारतीय संस्कारों में पला-बढ़ा तथा मानवीय लक्ष्यों को पहचानने वाला हर कोई अन्तर्मन से झूमने लगता है।

            यह वह समय है जब प्रकृति व सृष्टि, स्रष्टा व सर्जक तक शाश्वत आनंद की वह भाव भूमि प्राप्त कर लेते हैं जहाँ से ईश्वर की प्राप्ति के समस्त द्वार अपने आप खुलने लगते हैं।             शरीर को भोग वासनाओं और क्षणिक तथाकथित आनंद पाने के लिए इन्द्रियों के उन्मुक्त उपभोग के लिए आतुरता की चरमावस्था के साथ मचलने वालों, नशों से प्राप्त शिथिलता और मदिरा की खुमारी में जीने वालों, माया व अज्ञानता से घिरे पाश्चात्यों की नकल करने वाले लोगां को भले ही शरीर धर्म, जीवन लक्ष्य तथा आनंद पाने के सहज, सरल एवं परम्परागत मार्गां, साधनों का ज्ञान होना असंभव हो, लेकिन शरीर को साधन मानकर इसका ऊर्ध्वदैहिक उपयोग करने के जानकारों के लिए भारतीय संस्कृति के ये ही संस्कारों से भरे आनंद उत्सव जीवन यात्रा की सफलता में सहायक सिद्ध होते हैं।             इस मर्म को जो जान लेता है उसका सम्बन्ध विराट ऊर्जाओं और महान परिवर्तन लाने में सक्षम अर्वाचीन ऋषि-मुनियों, तपस्वी योगियों, सिद्धों तथा ऐतिहासिक महापुरुषों व अपने पुरखों से स्वतः ही जुड़ने लगता है।

            भूत व वर्तमान की दिव्य श्रृंखला के तार जब जुड़ जाते हैं तब हममें भी वह सामर्थ्य आ जाता है कि समाज व जगत को कुछ दे सकें, संसार के लिए जी सकें तथा अपने पूर्वजों की गौरवशाली परम्पराओं का संरक्षण-संवर्धन कर नया इतिहास रच सकें।             आज का यह चैत्री नव वर्ष का शुभारंभ दिवस इसी शाश्वत जुड़ाव और जगत के लिए समर्पित होने के संकल्पों का स्मरण कराता है।             अपनी गर्वीली परम्पराओं, आँचलिक संस्कृति की गंध और प्रकृति की महक के साथ नव वर्ष मनाएँ। वह भी ऐसा कि इसकी दिव्य गंध से व्यष्टि और समष्टि तक आनन्दोत्सव की धाराओं में नहाकर नित नूतन और पावन होने का अहसास अब किसी क्षण कम न हो।             यह वर्ष हमें इतनी उपलब्धियाँ और सफलता प्रदान करे कि भारतीय विक्रम संवत 2082 हमारे समग्र जीवन के लिए ऐतिहासिक यादगार बने। यह वर्ष दिव्यताओं व आशाओं भरा है। इस तथ्य को जानकर स्व विकास तथा मातृभूमि के उत्थान की सारी संभावनाओं को साकार करें।

            भारतीय नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं …

— डॉ. दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

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