ईद मुबारक
दिखा रहा जो आसमान को उस दर्पण को ईद मुबारक
झांक रही जो रोशन किरणें उन किरणों को ईद मुबारक।
जलते – जलते जल जाती है बाती एक दिये के संग,
दिया और बाती की संगत उस संगत को ईद मुबारक।
नश्वरता की इस दुनिया में मिलना जुलना और बिछड़ना,
पार झरोखे के जो दिखता उस दर्शन को ईद मुबारक।
भीनी-भीनी गंध लुटाता सुर्ख़ लजाता सुंदर मुखड़ा,
ग़ज़लों जैसी प्यारी खुशबू उस खुशबू को ईद मुबारक।
यादों के गलियारों में एक अकेला मन भटके,
सन्नाटे में तन्हा -तन्हा तन्हाई को ईद मुबारक।
नव प्रभात की नव बेला में फूलों का फिर से खिलना,
नूर टपकता सुंदर मुखड़ा उस मुखड़े को ईद मुबारक।
घोर यातना संघर्षों में टूटे सपने और मुकद्दर,
इन्द्रधनुष सी आभा ओढ़े सर्व जनों को ईद मुबारक।
— वाई. वेद प्रकाश