कविता

जड़ों से कब जुड़ पाओगे

अपनी जड़ों से कब जुड़ पाओगे,
कटे रहोगे बंटे रहोगे,
चीखोगे,चिल्लाओगे,छटपटाओगे,
पर चैन कहां से लाओगे,
खुद के बारे में सोचते रहते,
अपनों को क्यों भूल जाते हो,
जरूरत पड़ती है भीड़ की जब जब
गैरों को क्यों नहीं बुलाते हो,
भीड़ के एक एक व्यक्ति का
झट से सौदा कर जाते हो,
अपमानित करते शब्दों से
क्यों तुम्ही नवाजे जाते हो,
काम तुम्हारा बड़ा ही रोचक,
बैरी के हो संकटमोचक,
यूं बनी रहे कृपा सदा ही
सोच चरणों में लोट जाते हो,
कैसे गिरा और क्यों नहीं संभला
देख नहीं चोट पाते हो,
जड़ से ही शाखाएं फूटेंगी,
कुल्हाड़ी लकड़ी लूटेंगी,
जल्दी जुड़ो खाद-पानी सींचो,
अपनों पर ना मुट्ठी भिंचो,
एक नया सूरज खिलेगा
सबके संग खिलखिलाओगे,
बताओ जड़ों से कब जुड़ पाओगे।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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