कविता

अच्छी शिक्षा अच्छे संस्कार अपनाएं

हमारी सोने की चिड़िया लूटी
हमें अप्रैल फूल बना गए
चैत्र महीने से शुरू होता था जो देसी साल
उसे पहली जनवरी से मनाना सिखा गए

अपनी संस्कृति भूल कर हम
कैसे उनके झांसे में आ गए
सब भूल गए देशी महीनों के नाम
जनवरी से दिसंबर पर आ गए

हम भी पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंग गए
भूल गए सब कुछ अपना स्वदेशी
हिंदुस्तान छोड़ कर जा रहे पैसे के चक्कर में
अपनी भारतमाता को भूल कर बन गए विदेशी

बसंत का वैभव फैलता है चारों ओर
मधुमास के रूप में प्रकृति करती है श्रृंगार
कोम्पले प्रस्फुटित होती हैं पेड़ पौधों पर
मानव शरीर में भी होता है नवजीवन का संचार

चैत्र मास की प्रतिपदा को सतयुग में ब्रह्मा जी द्वारा
किया गया था सृस्टि की रचना का श्रीगणेश
मानवता के कल्याण में लग गए थे
फिर त्रिलोकीनाथ विष्णु और महेश

नव दीप जले मन में सबके खुशियों के
अपनी संस्कृति को सहेजें उसको बचाएं
आओ हम सब मिलजुल कर स्वदेशी अपनाएं
चैत्र मास की प्रतिपदा को नव संवत्सर मनाएं

सनातन धर्म की रक्षा को हम सब आगे आएं
बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले अच्छे संस्कार अपनाएं
देवी मां का हाथ रहे सब के सिर पर
चैत्र मास से ही मनाएंगे नव वर्ष आओ यह कसम खाएं

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

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