आंसू अचूक अस्त्र
राष्ट्रीय पर्व पर कुछ अप्रिय घटनाएँ घटने के कारण आन्दोलन कमजोर पड़ने लगा. इसी कारण आन्दोलन के एक घटक दल ने भी आन्दोलन से अलग होने का निर्णय ले लिया. प्रशासन के रुख को देखते हुए प्रदर्शनकारी भी तितर बितर होने लगे. हालात की समीक्षा करते हुए एक शाम प्रशासन ने आन्दोलन समाप्त करवाने के उद्देश्य से नेता जी के मंच के चारो ओर फैले पुलिस के घेरे को छोटा करना शुरू कर दिया. गिने चुने लोग ही उन के साथ रह गए थे. घरों में टी वी चैनलों के सामने बैठे दर्शकों को लग रहा था कि पुलिस किसी भी क्षण उन्हें अपनी हिरासत में ले सकती है.
तभी नेता जी के पास उनकी पत्नी की वीडियो काल आई, जिसमें वह आंसू बहाकर हठधर्मिता से अपनी बात मनवाने का प्रदर्शन कर रही थीं. नेता जी को प्रेरणा मिली और आन्दोलन को नया जीवन. नेता जी की आँखों से टपाटप आंसू बहने लगे. नेता जी बार बार रोते हुए कह रहे थे, ‘’ मैं अपने किसान भाइयों की मांगें पूरी होने तक, व अपनी अंतिम साँस तक यहीं डटा रहूँगा. हाँ, यहीं डटा रहूँगा. यहीं मेरी चिता जलेगी. ‘’ प्रशासन हतप्रभ रह गया. प्रदर्शनकारी लौटने लगे. आन्दोलन को संजीवनी मिल गई थी.
— विष्णु सक्सेना