क्या होगा
बीच धार में फँसी है नैया, डूब गयी तो क्या होगा,
नहीं तैरना आता मुझको, सोच रहा हूँ क्या होगा।
जीवन पथ की डगर कठिन, बाधाएँ विचलित करती,
मुझको मार्ग दिखाओ प्रभु, भटक गया तो क्या होगा?
निज सुख को ही सुख समझा, सुख में ही जीता आया,
दर्द गैर का समझ सका ना, दर्द मिला तो क्या होगा?
यश अपयश के ताने बाने में, उलझ रहा मेरा तो मन,
सहज सरल समर्पित जीवन, नहीं रहा तो क्या होगा?
— डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन