गीत/नवगीत

तन-मन-धन सब मिलकर ही

प्रेम में नहीं भिन्न कुछ होता, एकाकार हो जाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
तन का मिलन वासना प्यारी।
अलग-अलग रहती है क्यारी।
तेरा-मेरा धन भिन्न जब तक,
मैं हूँ दूर और तुम हो न्यारी।
मन से मीत मिलन जब होता, एक-दूजे को भाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
समझ रहा था, मैं अभिन्न हूँ।
तुमने बताया, मैं तो भिन्न हूँ।
तुमको चाह है धन की केवल,
जाना जब से, मन से खिन्न हूँ।
अर्ध-नारीश्वर शिव हो जाते, मन के मीत मिल जाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
गलतफहमी में मैं था जीता।
तुमने लगाया उसको पलीता।
मजबूर नहीं हो, स्वयं कमातीं,
तुम संपूर्ण हो, मैं हूँ रीता।
मन का मिलन जब है होता, साथ में सोते-खाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)

Leave a Reply