सर्वदलीय सर्वपूजक मौकापरस्त सरकारी जँवाई और फूफे-फूफियां
सरकारी जँवाइयों की तरह-तरह की विचित्र किस्मों में सर्वाधिक संख्या उनकी है जो मौकापरस्त हैं और अवसरवादी मानसिकता के मामले में इनका कोई जवाब नहीं। यों इनके लिए निर्धारित सेवाओं के ठोस आचरण नियम हैं, नीति और निर्देश हैं और समय-समय पर जारी आदेश भी हैं लेकिन इनकी पालना कितनी हो पाती है यह किसी से छिपा हुआ नहीं। कारण कि पालन करने वाले और कराने वालों की मानसिकता में कहीं कोई अन्तर नहीं है।
अवसर की तलाश में गिद्धों की पैनी दृष्टि हो या फिर गिरगिटिया रंगबदलू अवस्था, या फिर मत्स्य-बगुला दृष्टि, गाय-बगुला संबंध हों या और किसी भी प्रकार के रिश्ते, इस वर्ग में वे सारे गुण और हुनर विद्यमान हैं जिनसे हरकतों, करतूतों और कारनामों की कहीं स्वाभाविक और कहीं सिजेरियन प्रसूति होती है।
इस मौकापरस्ती वाली परम्परा में ड्यूटी, ईमानदारी, कर्त्तव्यपरायणता और समर्पण भाव कोई मायने नहीं रखता। सर्वाधिक असर करता है आकाओं के प्रति दुमहिलाने, जयगान करते हुए परिक्रमा करते और उन्हें खुश करने के लिए किए जाने वाले सारे जतन, और रास्ते।
दो-चार को खुश कर दो, खुश किए रखो और फिर हजारों के साथ चाहे जो करो, खुली छूट रहती है, कोई पूछने वाला नहीं। दुनिया के सारे गधे इसी तरह अपने आपको अखाड़ची पहलवान मानते हुए घास बेचकर गुलाबजामुन और रसगुल्ले खा भी रहे हैं और इसकी चाशनी में नहा भी रहे हैं। अपने आस-पास और साथ वालों को यह चाशनी चाटने का भरपूर मौका भी दे रहे हैं।
कहने को राजधर्म में निरपेक्ष भाव प्राथमिक शर्त है लेकिन पांच साला आकाओं के आगे-पीछे घूमने वाले, अर्दलियों की तरह उनके प्रासादों और गोपनीय गलियारों में सेवा-चाकरी करने वाले साठ साला सरकारी जँवाइयों का पूरा ही जीवन दुम हिलाते हुए फ्रीस्टाईल मौज-मस्ती और आयातित पराए एवं उन्मुक्त भोग-विलासी बाड़ों में गुजर रहा है।
आका जहाँ कहीं जाते हैं वहाँ भेड़ों की रेवड़ की तरह तमाम किस्मों के उपकृतों की भीड़ जुटी रहती है अपने सारे काम-धाम और ड्यूटी को छोड़कर, वो भी ड्यूटी अवर्स में। दलों और विचारधाराओं से दूरी बनाए रखना इनके लिए प्रतिबंधित हो सकता है, किसी की चापलूसी, जयगान और परिक्रमा करते हुए व्यक्तिपूजा करने से कोई नहीं रोक सकता इन्हें। फिर जो इनके सुख-दुःख का ख्याल रखता है वही इनके लिए माता-पिता और भगवान से कम नहीं होता। एक बार माँ-बाप और भगवान को धकिया सकते हैं पर अपने आका को नहीं। मजे की बात ये कि अनपढ़-गँवारों के सामने पढ़े-लिखे ऐसे पेश आते हैं जैसे कि जरखरीद गुलाम या मनोरोगी।
इस मामले में किसम-किसम के नुमाइन्दों को देखा जा सकता है। इनके लिए हर सरकार और हर पार्टी उनकी अपनी है जो सत्ता में होती है। खूब सारे हैं जो अपने घरों पर सत्ता के हिसाब से झण्डे बदलते रहते हैं। इनके पास हर पार्टी के झण्डे हमेशा तैयार रहते हैं।
जो पार्टी चुनाव में जीत जाती है उसी का झण्डा अपने घर की छत पर लगा देते हैं। हारने वाली पार्टी का झण्डा आलमारी में बंद हो जाता है। नहीं बदलता है तो सिर्फ वह डण्डा, जो कई दशक निकाल देता है। इसी तरह इन पार्टियों के नेताओं की तस्वीरों की भी अदला-बदली कुछ-कुछ साल में होती रहती है।
इसी तरह कई दिन तक चलने वाली विभिन्न प्रदर्शनियों में जिस दिन जो वीआईपी आने वाला होता है उससे संबंधित कुछ एक्स्ट्रा फोटोग्राफ्स लगा दिए जाते हैं ताकि वो अभिभूत होकर आशीर्वाद देकर ही लौटे।
इसी तरह मनचाहे स्थान पर बने रहने या तबादला व पोस्टिंग के इच्छुक हों या फिर तबादला रुकवाने की गरज हो, तब ये सरकारी जँवाई और फूफे-फूफियां अपने आपको सत्तारूढ़ दल के पक्ष का बताकर अपना काम निकाल लेते हैं।
ऐसे खूब सारे हैं जिनके लिए हर पार्टी अपनी सत्ता के समय यही लिखकर डिजायर काटती है कि ये अपने हैं। शासन कांग्रेस का हो तब ये बन्दे अपने आपको कांग्रेस विचारधारा का सिद्ध कर डालते हुए स्थानीय नेताओं से मनचाही सिफारिश लिखवा कर भिजवा देते हैं और शासन भाजपा का आ जा जाए तब अपने आपको आरएसएस और बीजेपी का बताकर डिजायर कटवा देते हैं।
बहुत बड़ी संख्या ऐसे डिजायर ड्राइवरों की है जो हर शासन में अपने आपको उसी पार्टी का समर्थक या प्रशंसक बताते हुए पोस्टिंग और ट्रांसफर की रेवड़ियों भरे ट्रकों को हाँकते हुए अपने नाम करा लेते हैं।
इनकी पूरी जिन्दगी में पेश की गई सारी डिजायरों को एक जगह इकट्ठा करके देखा जाए तो दिखेगा कि ये किसी के नहीं हैं, अवसर को भुनाने वाले हैं। ऐसे कामों में सहयोग करने वाले छुटभैयों और दलालों की आजकल कहीं कोई कमी नहीं है। फिर डिजायरों का सृजन किन आधारों पर होता है, इसे समझदार लोग अच्छी तरह जानते हैं। सत्ता की हर सड़क पर ये स्विफ्ट डिजायरें सरपट भागती हुई सैर-सपाटों का मजा लेती और देती रहती हैं।
यही हाल भक्तों का भी है। बहुत से भक्तों ने अपने घरों में कई-कई गुरुओं की तस्वीरें लगा रखी हैं। किसी एक गुरु से संबंधित कोई कार्यक्रम हो, या गुरु स्वयं पधारते हैं तब उसी गुरु की तस्वीर नज़र आती है, बाकी सारे गुरु कहीं अंधेरे कक्ष में समाधिस्थ कर दिए जाते हैं।
गुरुओं के आने और उनके आयोजनों के अनुसार गुरुओं की तस्वीरें बदलती रहती हैं। और सामान्य दिनों में 4-5 गुरुओं के पावन दर्शन होते हैं जिससे हर आगंतुक इन्हें महान धार्मिक आध्यात्मिक मानकर अभिभूत हो उठता है।
इन गुरुओं की तस्वीरों के सामने ही इनके चेले-चेलियां झूठ-फरेब, अन्याय, शोषण और अनाचार से भरे पापकर्म करते रहते हैं क्योंकि इन्हें पक्का विश्वास होता है कि इतने सारे समर्थ गुरुओं के रहते उनके सारे पापों का कोई अस्तित्व नहीं रहने वाला।
यही कारण है कि बड़े-बड़े भ्रष्ट अफसर, नेता, अपराधी, चोर-डकैत, ब्याजखोर, नशाखोर, अतिक्रमण कर जमीन-जायदाद हड़पने वाले, फाइनेन्सर और मुफ्त का माल उड़ाने वाले, शोषण, अत्याचारी, अनाचारी, माँ-बाप और पत्नी को प्रताड़ित करने वाले असामाजिक तत्व आदि इन गुरुओं की भक्त बनकर गुरु महिमा का वर्णन करते हुए चेले-चेलियों की रेवड़ का आकार बनाने के लिए हर तरह के हथकण्डों का इस्तेमाल करते रहते हैं।
गुरु कृपा का वरदान साथ हो तो फिर क्या पाप और क्या बुरा कर्म। आखिर हमने गुरु बनाए ही किसलिए हैं ? फिर समर्थ गुरु ऐसे कि चाहे जो कर या करा सकते हैं। इन गुरुओं का भगवान या धर्म से कोई लेना-देना नहीं होता मगर सरकार चलाने वालों से कुछ भी करा सकने का सामर्थ्य इनमें होता है।
अपने पूर्वजों के गौरव, आत्म स्वाभिमान और नैतिक मूल्यों तथा संस्कारों को छोड़कर मनमानी और मनचाही हरकतों के लिए बहुत जरूरी हो चला है अपने आपको गिरवी रखना या पूरी तरह बेच देना। ऐशो-आराम, धन-वैभव और लोकप्रियता को ही जिन्दगी का मुख्य ध्येय समझ चुके हम लोगों के लिए बेशर्मी और सर्वांग-प्रत्यंग समर्पण के सारे द्वार खुले हुए हैं।
–– डॉ. दीपक आचार्य