गीत/नवगीत

गीत – हर समय सुहाना है

कुछ उसने जाना है, कुछ मैंने जाना है।
जीवन को जीने का, बस एक बहाना है।।

कुछ अच्छा करने को, सब लोग यहाँ आते हैं,
रीती गागर लेकर, लेकिन जग से जाते हैं,
कुछ पुण्य कमा लो भाई, पूजा-वन्दन करके-
गंगा तट पर आकर भी, कुछ नहीं नहाते हैं,
किस्मत में जो लिक्खा, उतना ही पाना है।
जीवन को जीने का, बस एक बहाना है।।

मिलता अच्छे कर्मों का, दुनिया में यही सिला,
जो खिलकर मुस्काया, उसको ही प्यार मिला,
उपवन में आकर भी, ताजगी न जो पाया-
बे-वजह रहा करता, कुछ शिकवा और गिला,
मत दोष वक्त को दो, हर समय सुहाना है।
जीवन को जीने का, बस एक बहाना है।।

मैंने क्यों ज्यादा पाया, उसने ज्यादा क्यों खोया
वैसा ही सबने पाया, है जैसा सबने बोया,
मन साफ जरा करके, तन साफ करो अपना-
उतना ही साफ दिखा वो, जिसने वस्त्रों को धोया,
मन को भक्ति के जल से, हर रोज नहाना है।
जीवन को जीने का, बस एक बहाना है।।

गुलशन हरियाली बिन, लगता वीराना है,
उजड़ी बगिया में फिर, कुछ पेड़ लगाना है,
पुरखों की खातिर तुम, बन जाओ भगीरथ से-
इक और नई गंगा, धरती पे बहाना है।
मानवता का हमको, अस्तित्व बचाना है।
जीवन को जीने का, बस एक बहाना है।।

— डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है

Leave a Reply