कविता

सरकार से इल्तज़ा

ऐ सरकार!
आपसे एक इल्तज़ा है
करना स्वीकार
निज खातिर नही माँग रहा भीख
थोड़ा समझना,गहन-चिंतन करना
बीते आपदाओं से लेना सीख
प्रकृति जब विकराल रूप लेता है
तो समूचा निगल जाते हैं
राजा-प्रजा नही देखते हैं
इसलिए धनिको के लाभांश हेतु
मत उजाड़ो जंगल को
अमन चैन बने रहने दो
मत छीनों किसी के मंगल को
विशाल वन का विध्वंश
झेलना पड़ेगा दंश
साथ ही सब जीवों के बद्दुआ
मत लाओ आपदा जो अब तक न हुआ
देखो भागते-मरते जीव को
मनुष्य के आधार जल,जंगल,जमीं नींव को
एक पेड़ बनने सहस्त्रों वर्ष लगते हैं
आप तो समूचा जंगल उजाड़ रहे हो
जीवों के साथ मनुष्यों के
मंगल उजाड़ रहे हो ।।

— चन्द्रकांत खुंटे ‘क्रांति’

चन्द्रकांत खुंटे 'क्रांति'

जांजगीर-चाम्पा (छत्तीसगढ़)

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