गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मिलके यूं तुमसे मैं कहीं खोने लगा
खुद को भुला कर दूर खुद होने लगा
कल रात तेरी जागकर बातें हुयी
हमराज बनके चाँद भी रोने लगा
मिलता सुकूँ महिफल नहीं तेरे बिना
तेरे नयन जगने कभी सोने लगा
दूरी बहुत खलती हमें अक्सर यहाँ
हर बूद आँसू याद को धोने लगा
काँटे दिखे तो सब जलाते ही गये
फसलें यूं ही फूलों की अब बोने लगा

— हेमंत सिंह कुशवाह

हेमंत सिंह कुशवाह

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