कविता

जीवन क्रीड़ा

सोच न बंदे गंदगी
तु कर ले ईश्वर की बंदगी।

यही तो जीवन की मर्यादा है
तु खुद का ही भाग्य विधाता है।

अजर अमरता को रहने दें
जीवन को विभिन्न सुर में बहने दें।

जीवन में जो भी आता है
उसको उल्लास से आने दें।

जीवन से जो भी जाता है
उसको भी मुस्कुराते हुए जाने दें।

मस्ती को अपनी हस्ती में रहने दें
जीवन को सस्ती बस्ती में बहने दें।

— डॉ. राजीव डोगरा

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- [email protected] M- 9876777233

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