गीत/नवगीत

जुगनुओं को साथ ले ले

प्रेम दिखावा मात्र, छल कपटी इंसान है यहाॅं।
संस्कार सब भूल रहे, नहीं धर्म ईमान है यहाॅं।
मानव रहा कहाॅं? अब दानव सा आदमी यह,
मर्यादा रही न अब तो धरती का शैतान है यह।
छोड़ राह के कंटक बिछे, फूलों का पाथ ले ले।
फैला तिमिर बहुत है, जुगनुओं को साथ ले ले।

लज्जा शर्म हया होती संस्कार अगर यह होते।
गुजारे कहीं सत्संग में दिन चार अगर यह होते।
नफरत की न होती दीवारें भाईचारा यहाॅं होता,
दिल लेते जीत यहाॅं, मान सत्कार अगर होता।
महके चमन फिर से वही, प्रेम की सौगात ले ले।
फैला तिमिर बहुत यहाॅं, जुगनुओं को साथ ले ले

काम, क्रोध मद लोभ, सभी मन से तुम छोड़ दो।
नफरत द्वेष पनपे जहाॅं अपना तू रिश्ता तोड़ दे।
जुगनुओं के संग हमें, रवि रश्मियां भी देना प्रभु।
पावन हो हृदय सभी कलुषित मन‌ हर लेना प्रभु।
सोच सुथरी जिन की रहे‌, वो कोमल हाथ ले ले।
फैला तिमिर बहुत यहाॅं, जुगनुओं को साथ ले ले।

— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995

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