भारत मां का रूप निराला
भारत मां का रूप निराला, आभा इसकी निराली है।
बर्फ से ढके पहाड़ इस के, नदियों से हरियाली है।
किसान करते खेती बाड़ी, पशुधन लगता प्यारा है।
मंदिर पूजा पाठ हैं करते, लगता अजब नजारा है।
हाथ तिरंगा ले कर चलते, नया भारत बनाते हैं।
अनेक धर्म पर हम एक हैं, शिष्टाचार निभाते हैं।
देवताओं का यहाॅं वासा, रहती शेरांवाली है।
भारत मां का रूप निराला, अभा इसकी निराली है।
शांति के हैं हम मसीहा, यह संदेश सुनाते हैं।
देश रहे खुशहाल हमारा, उद्योग नए लगाते है।
बांध कफ़न सरहद पर जाते, जोश भरा है सीने में।
सौंधी खुशबू है वतन की, आती खून पसीने में।
मुस्कुराता यहां है यौवन, रहती मुख पर लाली है।
भारत मां का रूप निराला, अभा इसकी निराली है।
मरने से वीर नहीं डरते, सीने यह फौलादी हैं।
दुश्मन से है लोहा लेते, सदा मौत के आदी हैं।
देश हित कुर्बान हो जाते, सदा शहादत पाते हैं।
आंच न आए कभी देश पर,लाल यहाॅं मिट जाते हैं।
प्रेम का यहाॅं भाईचारा, बनें ईद दीवाली है।
भारत मां का रूप निराला, आभा इसकी निराली है।
— शिव सन्याल