तकदीर हो तो ऐसी हो!
लड़की और बेल के बढ़ते देर नहीं लगती. देखते-ही-देखते घर-घर बर्तन-झाड़ू-फटका करने वाली कौशल्या विवाह के योग्य हो गई. मौसम बदल रहा था. एक गुलाबी सुबह की रोशनी ने उसकी तकदीर बदल दी. दक्षिण भारत से काम की तलाश में आए युवक से उसकी शादी तय हो गई. शादी के लिए उसे कुछ भी जुटाना नहीं पड़ा. अपने अच्छे स्वभाव के कारण उसने अपने सब घरों से ही इतना पा लिया, कि और कुछ खरीदने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी. शादी के लिए तो उसे दक्षिण भारत जाना ही था, शादी उसके पुश्तैनी गांव में दक्षिण भारत के रीति-रिवाज़ों के मुताबिक जो होनी थी. कुछ दिनों बाद ही वह लड़की से बहू बनकर दिल्ली वापिस आ गई. अब उसका पति कमाता था, वह घर में रहती थी और पति ने उसके लिए काम वाली भी रख दी थी. तकदीर हो तो ऐसी हो!
— लीला तिवानी