लघुकथा

तकदीर हो तो ऐसी हो!

लड़की और बेल के बढ़ते देर नहीं लगती. देखते-ही-देखते घर-घर बर्तन-झाड़ू-फटका करने वाली कौशल्या विवाह के योग्य हो गई. मौसम बदल रहा था. एक गुलाबी सुबह की रोशनी ने उसकी तकदीर बदल दी. दक्षिण भारत से काम की तलाश में आए युवक से उसकी शादी तय हो गई. शादी के लिए उसे कुछ भी जुटाना नहीं पड़ा. अपने अच्छे स्वभाव के कारण उसने अपने सब घरों से ही इतना पा लिया, कि और कुछ खरीदने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी. शादी के लिए तो उसे दक्षिण भारत जाना ही था, शादी उसके पुश्तैनी गांव में दक्षिण भारत के रीति-रिवाज़ों के मुताबिक जो होनी थी. कुछ दिनों बाद ही वह लड़की से बहू बनकर दिल्ली वापिस आ गई. अब उसका पति कमाता था, वह घर में रहती थी और पति ने उसके लिए काम वाली भी रख दी थी. तकदीर हो तो ऐसी हो!

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

Leave a Reply