नौ दरवाजे सभी खुले
मनुज-देह दृढ़ एक किला।
बड़े भाग्य से तुम्हें मिला।।
नौ दरवाजे सभी खुले,
एक फूल जो नहीं खिला।
आए- जाए श्वास युगल,
होता प्रतिक्षण नहीं गिला।
उर की धड़कन है जीवन,
धड़-धड़ पल-पल रहा हिला।
जाग्रत रसना रुके नहीं ,
नहीं जीभ का भार झिला।
आम पिलपिला हुआ कभी,
वही शाख से सदा रिला।
‘शुभम्’ नहीं खो नर जीवन,
मनुज-योनि है एक *तिला ।
*तिला= स्वर्ण।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’