लघुकथा

मजदूरी

‘आज कैसे भी करके शाम तक पैसे की जुगाड करनी होगी। वरना मेरा राघव आज भी भूखा सो जाएगा। मुझसे उसकी दशा देखी नहीं जाती।अभी से बेचारे दाने दाने को मोहताज हो गये है।और मैं कुछ कर नहीं सकता।’
“अरे तू क्या सोचता रहता है?” पीछे से सेठ ने आवाज़ लगाई। “अरे एक ईंट भी टूटीं तो तेरी खैर नहीं। मुफ्त में नहीं आती ईंटें। तू नहीं समझेगा।” सेठ बड़ा बेरहम और बदतमीज था।
“सेठ जी आपका नुकसान नहीं होगा। मैं पूरा ध्यान रखूंगा।” रमेश ने सेठ जी से कहा, “पर काम के बाद मेरी मजदूरी दे देना वरना मेरा राघव आज फिर भूखा सो जाएगा।”

— अभिषेक जैन

अभिषेक जैन

माता का नाम. श्रीमति समता जैन पिता का नाम.राजेश जैन शिक्षा. बीए फाइनल व्यवसाय. दुकानदार पथारिया, दमोह, मध्यप्रदेश

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