रिश्ता
शिविका से मिलना क्या हुआ, मौसम गुलाबी हो गया! हर सोमवार को सुबह ठीक साढ़े आठ बजे वह आती थी.
“आंटी आज नाश्ते के लिए क्या बनाना है?” आते ही पूछती और चुस्ती से सामान निकालकर 20-25 मिनट में बहुत बढ़िया नाश्ता बनाकर खिलाती, चाय पिलाती, फिर साढ़े नौ बजे टैक्सी बुलाकर हमें मीटिंग पर ले जाती. दो बजे हमें घर छोड़कर अपने घर जाती.
मौसम बदल रहा था. गर्मी शुरु होते ही ऑस्ट्रेलिया में दिसम्बर में सोमवार की मीटिंग की भी डेढ़ महीने की छुट्टी हो गई.
“आंटी, सोमवार को आपके साथ मेरी ड्यूटी है, मैं आया करूं या कोई और ड्यूटी ले लूं?” उसने पूछा.
“आ जाओ बेटे, हमें और क्या चाहिए?”
फिर तो जो रिश्ता हो गया, क्या कहें?”
“आंटी, आप तो मेरी मां भी हैं, सासू मां भी हैं. आपकी बहुत याद आएगी!” ऑस्ट्रेलिया से आते हुए गले लगकर खूब रोई!
— लीला तिवानी