हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – तिकड़म

इस असार संसार में ऐसा भी बहुत कुछ विद्यमान है , जो ससार है,सारवान है।ऐसे ही सारवानों में एक शब्द ‘तिकड़म’ है।जिससे इस संसार का बहुत कुछ उपक्रम संचालित है।अगर यह न होता तो यह संसार अपने बहुत कुछ ‘अति महत्त्वपूर्ण’ से वंचित हो सकता था। तिकड़म की संतानों की संख्या इतनी अधिक है कि स्वयं तिकड़म को भी नहीं पता कि वह कितनी जायज संतानों की जननी है। बस उसे जन्म देते चले जाना है। इस बात की उसे कभी जिज्ञासा नहीं हुई कि उसकी यह जनसंख्या वृद्धि क्यों और किस उद्देश्य है होती जा रही है।

तिकड़म की सभी सभी संतानों की संख्या और नाम का अभिज्ञान तो इस अकिंचन को भी नहीं है।कोई दो चार हों तो गिना और बताया जाए, जब दिन दूना और रात चौगुना प्रजनन हो रहा है तो कोई कितना हिसाब रखे। तिकड़म के कुछ खास – खास और बड़े -बड़े बच्चों के नाम और उनकी ख्याति का गुणगान अपनी सीमा में रहकर बताने का प्रयास करूँगा।

‘तिकड़म’ के परिवार में जाने से पहले यह जानना भी आवश्यक है कि वह कौनसी अनुकूल परिस्थितियाँ रही होंगीं जब ‘तिकड़म’ ने अवतार लिया होगा।तिकड़म का जन्म स्थान मनुष्य की बुद्धि है। इस जागतिक जगत के बहुत सारे कामकाज,व्यवस्थाएँ और रीति -नीतियाँ सामान्य रूप से संचालित नहीं हो पा रही होंगीं तो दिमाग में किसी कुटिल कीट ने विदेह रूप धारण कर लिया ,जो चुटकी बजाते ही वह असाध्य कार्य करने में तत्पर था। जिसे ‘तिकड़म’ नामधारी संज्ञा से अभिहित किया गया। यह अपने वास्तविक स्वरूप में किसी सरलरता,सौम्यता,स्पष्टता,सादगी और सभ्यता के विपरीत ही था।इसे उलटे – सीधे चलने से कोई परहेज नहीं था।येन-केन-प्रकारेण अपना उल्लू सीधा करना ही इसका उद्देश्य रहा। छल,दंभ,द्वेष,पाखंड,अनीति, अन्याय आदि सबका साथ लेकर सबका कार्य साधना ही इसका लक्ष्य माना गया। निराश में आशा का संचार करना ही इसका मुख्य ध्येय था।तरीका क्या रहे,कैसा रहे- इससे कोई मतलब नहीं। बस लक्ष्य सिद्धि ही तिकड़म की चिड़िया की आँख बनी।

आपकी जिज्ञासा है तो यह बता देना भी आवश्यक है कि तिकड़म की संतानें कौन-कौन हैं और वे किस प्रकार फल फूल- रही हैं।कुछ ऐसे प्रसिद्ध तिकड़म संतति के नाम मेरी जानकारी में हैं,उन्हें बताए दे रहा हूँ। इनमें राजनीति, रिश्वत, मिलावट,चौर्य,गबन,छल,धोखा, अनीति,व्यभिचार,चरित्रहीनता आदि प्रमुख सन्ततियाँ हैं। यदि इनमें से किसी एक का भी कच्चा चिट्ठा खोल लीजिए तो कई -कई महाग्रंथों का निर्माण हो जाए।राजनीति को तिकड़म की सबसे बड़ी संतान समझा जा सकता है।यह अनादि काल से अपने नए-नए मुखौटों में प्रकट होती हुई विरोधियों को धूलिसात करती हुई ‘जनहित’ करने पर उतारू है।इसके लिए कुछ भी उचित या अनुचित नहीं है।बस सामने वाले को पछाड़ना है।यह पवित्र कार्य कैसे भी हो, किसी भी साधन से हो,हिंसा या अहिंसा से हो, यह नहीं देखना ; बस सामने वाला विपक्षी धराशायी हो जाना चाहिए।नाम के साथ यों तो ‘नीति’शब्द भी जुड़ा हुआ है,किन्तु उसे नीति से कोई मतलब नहीं है; जो है सब ‘राज’ ही राज है ।सब ‘राज'(रहस्य) की ही बात है। यदि उनके राज की बात ही किसी के सामने खुल गई तो क्या रहा राज और क्या रही राजनीति? सब कुछ टेढ़ी चालों और छलों की मोटी दीवार के पीछे छिपा हुआ चलता है। जो जितना बड़ा राजनेता, उतना बड़ा तिकड़मी।इस ‘तिकड़म ‘ शब्द ने तिकड़म, तिकड़मी,तिकड़मबाज, तिकड़मबाजी,तिकड़मखोर आदि अनेक शब्दों को जन्म देकर हिंदी शब्दकोष के भंडार की अभिवृद्धि की है।

सबसे बड़ी संतति ‘राजनीति’ की तरह रिश्वत, मिलावट,चौर्य,गबन आदि भी उसके छोटे भाई-बहन हैं। छोटे इस अर्थ में हैं कि वे सभी राजनीति के उदर में समाए हुए हैं।कब कौन सा काम में लेना पड़े यह राजनीति और राजनेता ही जानता है।कहना यह चाहिए कि ये सभी उसी के वरद हस्त हैं। राजनीति की छत्र छाया तले पनपते ,फलते -फूलते और हँसते -मुस्कराते हैं। वैसे तो सब दूध के धोए हैं ,किन्तु जब पूँछ- प्रक्षालन होता है, तब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है।

‘तिकड़म’ कभी भी सीधी अँगुली से घी निकालने में विश्वास नहीं करती।उसका यह अटूट विश्वास है कि घी को कभी सीधी अँगुली से निकाला ही नहीं जा सकता।उसके लिए अँगुली टेढ़ी करनी ही पड़ेगी। इस असार संसार में सबको जीना है,इसलिए तिकड़म भी आना चाहिए। बिना तिकड़म के आम आदमी जिंदा नहीं रह सकता। यह एक सर्वमान्य सिद्धांत बन गया है। जंगल में वही पेड़ पहले काटे जाते हैं ,जो सीधे होते हैं। सीधे और सरल आदमी का जीना तिकड़मबाज दुष्कर कर देते हैं। इसलिए सबको तिकड़म सीखना और उसका सदुपयोग करना भी आना युगीन आवश्यकता बन गई है। इस तिकड़म के चलते आम आदमी शुद्ध अन्न- पानी भी नहीं ले सकता। नीति -सुनीति भाड़ में झोंक दी गई हैं। बस अनीति का ही एकमात्र सहारा है, जहाँ तिकड़म का हरा- हरा चारा है।जहाँ तिकड़म नहीं, वहाँ मूर्खता की नीर -धारा है। तिकड़म के आगे भला कौन नहीं हारा है ! तिकड़म का एक नहीं, पैना तिधारा है। जो तिकड़म से दूर है,वही तो बेचारा है।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040

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