बूढ़ी लाठी
“सुहाना, आंटी जी किधर हैं? गांव वापिस चली गईं क्या?” सुधा जी को घर में न देख सुहाना की सहेली ने उससे पूछा।
“अरे, बेटे बहू का साथ छोड़ कर अब गांव क्या करने जाएंगी?” कुछ क्षण रुक, फिर थोड़ा इठलाते और मुस्कुराते हुए बोली, “वैसे भी, बूढ़ी लाठी में ज्यादा दम नहीं होता, वो हमेशा सहारा ढूंढती है।”
छत से कपड़े उतार कर लाती हुई सुधा जी ने जब सुहाना की बात सुनी, तो चुप न रह पाईं, “बहू! हर बूढ़ी लाठी सहारा नहीं ढूंढती। कुछ बूढ़ी लाठियां तोड़े जाने पर वृद्धाश्रम के भी काम आती हैं। वैसे, आज का न्यूजपेपर तो तुमने पढ़ा ही होगा?”
न्यूजपेपर की हेडलाइन “बेटे-बहू से परेशान वृद्ध दंपति ने अपनी करोड़ों की वृद्धाश्रम को दान कर दी।” जवान लाठी के चेहरे पर हवाइयां उड़ा गई थी।
अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’